सटीक : बेनीपुरी लाल रंम और वस्त्र के पीले रंग के मिलने से नारंगी रंग, फिर होंठ के लाल रंग और दृष्टि के श्याम रंग से बैजनी रंग-इसी प्रकार, बाँसुरी के हरे रंग और अधरों के लाल रंग से पीला रंग इत्यादि । भगवान् श्यामसुन्दर का शरीर सघन मेघ, उसमें पीताम्बर की छटा दामिनी की दमक और बाँसुरी इन्द्रधनुष-जिसमें अधर, कर-कमल, दस-पंक्ति, नख-द्युति और 'श्वेत-स्याम-रतनार' दृष्टि की छाया प्रतिबिम्बित है ! धन्य वर्णन! कविवर मैथिलीशरणजी गुप्त ने भी 'जयद्रथ-वघ' में खूब कहा है- प्रिय पांचजन्य करस्थ हो मुख-लग्न यो शोभित हुआ। कलहंस मानो कंज-वन में आ गया लोभित हुआ । छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग । दीपति देह दुहूनु मिलि दिपति ताफता रंग ॥ २४ ॥ अन्वय-सिसुता की झलक छुटी न, अंग जोबनु झलक्यो, मिलि दह दीपति ताफता रंग दिपति । सिसुता=शिशुता=बचपन । जोबनु = जवानी । देह-दीपति =देह की दीप्ति, शरीर की चमक । ताफता = धूपछाँह नामक कपड़ा जो सीप की तरह रंग-विरंग झलकता या मोर की गरदन के रंग की तरह कभी हलका और कभी गाढ़ा चमकीला रंग झलकता है । 'धूप+छाँह' नाम से ही अर्थ का आभास मिलता है। दिपति=चमकती है। अमी बचपन की झलक छूटी ही नहीं, और शरीर में जवानी झलकने लगी । यों दोनों ( अवस्थाओं) के मिजने से ( नायिका के ) अंगों की छटा धूपबाँह के समान (दुरंगी) चमकती है। तिय तिथि तरनि किसोर-बय पुन्य काल सम दोनु । काहूँ पुन्यनु पाइयतु स-सन्धि संक्रोनु ।। २५ ।। अन्वय-तिय तिथि, किसोर-बय तरनि, दोनु पुन्य काल सम, बैस-सन्धि संक्रोनु काहूँ पुन्यनि पाइयतु । तरनि= सूर्य । समसमान राशि में आना, इकट्ठा होना । दोनु = दोनों । संक्रोनु =संक्रान्ति । बैस=षयस, वय, उम्र । ।