पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३५

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सटीक : बेनीपुरी
 

इक भीजै चहलै परैं बूड़ैं बहैं हजार ।
किते न औगुन जग करै नै बै चढ़ती बार ॥२८॥

अन्वय- इक भीजैं, चहलै परें, बूड़ै हजार बहैं, नै बै चढ़ती बार जग किते औगुन न करैं ।

भीजै = शराबोर हुए । चहलै परे = दलदल में फँसें । बूड़ैं = डूब गये । नै = नदी । बै = वय, अवस्था । औगुन = उत्पात, अनर्थ ।

कोई भीगता है, कोई दलदल में फँसता है, और हजारों डूबते बहे जाते हैं । नदी और अवस्था (जवानी) चढ़ते (उमड़ते) समय संसार के कितने अवगुण नहीं करती हैं ।

नोट- उठती जवानी में कोई प्रेम-रंग में शराबोर होता है, कोई वासना रूपी दलदल में फँसता है, कोई विलासिता में डूब जाता है, कितने उमंग-तरंग में बह जाते हैं । क्या-क्या उपद्रव नहीं होते । नदी में बाढ़ आने पर तरह-तरह के अनर्थ होते ही हैं ।

अपने अँग के जानि के जोबन नृपति प्रबीन ।
स्तन मन नैन नितंब कौ बड़ौ इजाफा कीन ॥ २९॥

अन्वय- अपने अँग के जानि के, जोबन प्रवीन नृपति, स्तन मन नैन नितंब कौ बड़ौ इजाफा कीन ।

अपने अंग के = अपना शरीर, सहायक | स्तन = छाती । नितम्ब = चूतड़ । इजाफा = तरक्की, बढ़ती ।

अपना शरीरी ( सहायक ) समझकर यौवनरूपी चतुर राजा ने ( नायिका के ) स्तन, मन, नयन और नितम्ब को बड़ी तरकी दी है ।

नोट- जवानी आने पर उपयुक्त अंगों का स्वाभाविक विकास हो जाता है ।

देह दुलहिया की बढ़ै ज्यौं ज्यौं जोबन-जोति ।
त्यौं त्यौं लखि सौत्यैं सबै बदन मलिन दुति होति ॥ ३०॥

अन्वय- दुलहिया की देह ज्यौं ज्यौं जोबन-जाति बढ़ैं, त्यौं त्यौं लखि सबै सौत्यैं-बदन-दुति मलिन होति ।