१३ सटीक : बेनीपुरी इक भीजै चहलै परें बह हजार। किते न औगुन जग करै नै बै चढ़ती बार ॥२८॥ अन्वय-इक मी0, चहल परें, बू. हजार बहैं, नै बै चढ़ती बार जग किते औगुन न करें। भीजै = शराबोर हुए । चहलै परे = दलदल में फँसें । बू. =डूब गये। नैनदी । बै= वय, अवस्था । औगुन = उत्पात, अनर्थ । कोई भीगता है, कोई दलदल में फँसता है, और हजारों डूबते बहे जाते हैं । नदी और अवस्था (जवानी) चढ़ते (उमड़ते) समय संसार के कितने अवगुण नहीं करती हैं। नोट-उठती जवानी में कोई प्रेम-रंग में शराबोर होता है, कोई वासना. रूपी दलदल में फंसता है, कोई विलासिता में डूब जाता है, कितने उमंग- तरंग में बह जाते हैं। क्या-क्या उपद्रव नहीं होते । नदी में बाढ़ आने पर तरह-तरह के अनर्थ होते ही हैं। अपने अंग के जानि के जोबन नृपति प्रबीन । स्तन मन नैन नितंब की बड़ी इजाफा कीन ॥ २९॥ अन्वय-अपने अंग के जानि के, जोबन प्रवीन नृपति, स्तन मन नैन नितंब को बड़ी इजाफा कीन । अपने अंग के=अपना शरीर, सहायक | स्तन=छाती। नितम्ब = चूतड़ । इजाफातरक्की, बढ़ती । अपना शरीरी ( सहायक ) समझकर यौवनरूपी चतुर राजा ने ( नायिका के ) स्तन, मन, नयन और नितम्ब को बड़ी तरकी दी है। नोट-जवानी आने पर उपयुक्त अंगों का स्वाभाविक विकास हो जाता है। देह दुलहिया की बदै ज्यों ज्यौं जोबन-जोति । त्यौं त्यौं लखि मौत्य सबै बदन मलिन दुति होति ॥ ३०॥ अन्वय-दुलहिया की देह ज्यौं ज्यो जोबन-जाति बढ़े, त्यौं त्यो लखि सबै सौत्य-बदन-दुति मलिन होति ।