पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३७

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सटीक : बेनीपुरी
 

सहज सचिकन स्यामरुचि सुचि सुगंध सुकुमार।
गनतु न मनु पथु अपथु लखि बिथुरे सुथरे बार॥३३॥

अन्वय—सहज सचिकन, स्यामरुचि, सुचि, सुगंध, सुकुमार बिथुरे सुथरे बार लखि मनु पथु अपथु न गनतु॥३३॥

सहज=स्वाभाविक। स्यामरुचि=काले। सुचि=पवित्र। बिथुरे=बिखरे हुए। गनतु= समझता या विचारता है। अपथु=कुपंथ। सुथरे स्वच्छ, सुन्दर।

स्वभावतः चिकने, काले, पवित्र गंधवाले और कोमल—ऐसे बिखरे हुए सुन्दर बालों को देखकर मन सुमार्ग और कुमार्ग कुछ भी नहीं विचारता।

वेई कर व्यौरनि वहै व्यौरो कौन बिचार।
जिनहीं उरझ्यौ मो हियौ तिनहीं सुरझे बार॥३४॥

अन्वय—वेई कर, वहै ब्यौरनि, बिचार कौन ब्यौरा ? जिनहीं मो हियो उरमयी तिनहीं बार सुरमे।

वेई=वे ही। न्यौरनि=सुलझाने का ढंग। ब्यौरो=ब्यौरा, भेद। उरझ्यौ=उलझा। बार=बाल, केश। सुरझे सुलझा रहे हैं।

वे ही हाथ हैं, बाल सुलझाने का ढंग भी वही है। (हे मन!) विचार तो सही कि भेद (रहस्य) क्या है? (मालूम होता है) जिन (नायक) से मेरा हृदय उलझा हुआ है, वे ही बाल भी सुलझा रहे हैं ।

नोट—नायक प्रेमाधिक्य के कारण स्त्री (नाइन ) का वेष बनाकर नायिका के बाल सुलझा रहा है। इसी बात पर नायिका चिंता कर रही है कि हो-न-हो, वे ही इस स्त्री के रूप में हैं ।

कर समेटि कच भुज उलटि खएँ सीस-पटु डारि।
काको मनु बाँधै न यह जूरा बाधँनिहारि॥३५॥

अन्वय—कच कर समेटि, भुज उन्नटि, सीस-पट खएँ डारि, यह जूरा बाँधनिहारि काकौ मनु न बाँधै।

कच=केश। समेटि=गुच्छे की तरह सुलझाकर। खएँ=पखौरा।