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बिहारी-सतसई
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सीसपट=सिर का आँचल। काको=किसका। जूरा=जूड़ा, केश-ग्रंथि, वेणी का कुण्डलाकार बन्धन। बाँधनिहारि=बाँधनेवाली।

बालों को हाथों से समेट, भुजाओं को उलटे और सिर के आँचल को अपने पखौरों पर डाले हुई यह जूड़ा बाँधनेवाली भला किसका मन नहीं बाँध लेती?

छुटे छुटावत जगत तैं सटकारे सुकुमार।
मन बाँधत बेनी बँधे नील छबीले बार॥३६॥

अन्वय—सटकारे सुकुमार छुटे जगत तैं छुटावत, नील छबीले बार बेनी बँधे मन बाँधत।

सटकारे=छरहरे, लम्बे। छुटावत=छुड़ाते हैं।

लम्बे और कोमल (बाल) खुले रहने पर संसार से छुड़ाते हैं-सांसारिक कामों से विमुख बनाते हैं—और ये ही काले सुन्दर बाल वेणी के रूप में बँध जाने पर मन को बाँधते हैं।

नोट—लटों में कभी दिल को लटका दिया ।
कभी साथ बालों के झटका दिया॥-मीरहसन

कुटिल अलक छुटि परत मुख बढ़िगौ इतौ उदोत।
बंक बकारी देत ज्यौं दामु रुपैया होत॥३७॥

अन्वय—मुख कुटिल अलक छुटि परत उदोत इतौ बढ़िगौ, ज्यों बंक बकारी देत दामु रुपैया होत।

कुटिल=टेढ़ी। अलक=केश-गुच्छ, लट। उदोत=कान्ति, चमक। बंक=टेढ़ी। दाम=दमड़ी। छुटि परत=बिखरकर झूलने लगता है। बकारी=टेढ़ी लकीर जो किसी अंक के दाईं ओर उसके रुपया सूचित करने के लिए खींच दी जाती है।

मुख पर टेढ़ी लट के छुट पड़ने से (नायिका के मुख की) कान्ति वैसे ही बढ़ गई है, जैसे टेढ़ी लकीर (बिकारी) देने से दाम का मोल बढ़कर रुपया हो जाता है।

नोट—दाम )१ यो लिखते हैं और रुपया १) यों। अभिप्राय यह है कि वही बाल स्वाभाविक ढंग से पीछे रहने पर उतना आकर्षित नहीं होता