ज्यों-ज्यों (उस नायिका के मुख पर) मस्ती की लाली चढ़ती जाती है, (वह बेंदी) साफ खुलती चली जाती है।
तिय-मुख लखि हीरा जरी बेंदी बढ़ै बिनोद।
सुत-सनेह मानौ लियौ बिधु पूरन बुधु गोद॥४६॥
अन्वय—तिय-मुख हीरा जरी बेंदी लखि बिनोद बढ़ैं, मानौ सुत-सनेह पूरन बिधु बुधु गोद लियौ।
बिधु पूरन=पूर्ण चन्द्रमा। बिनोद=प्रसन्नता, आनन्द। बुधु=बुध, चंद्रमा के पुत्र।
स्त्री (नायिका) के मुख पर हीरा जड़ी हुई बेंदी देखकर आनन्द की वृद्धि होती है मानो पुत्र के स्नेह से पूर्ण चन्द्रमा ने बुध को गोद लिया हो।
नोट—यहाँ नायिका का मुख पूर्ण चन्द्र है और हीरा-जड़ी बेंदी बुध।
गढ़-रचना बरुनी अलक चितवनि भौंह कमान।
आघु बँकाई ही बढ़े तरुनि तुरंगम तान॥४७॥
अन्वय—गढ़-रचना, बरुनी, अलक, चितवनि, भौंह, कमान, तरुनि, तुरंगम, तान-आघु बँकाई ही बढ़े।
बरुनी=पलक के बाल। अलक=मुखड़े पर लटके हुए लच्छेदार केश, बंकिम लट। कमान=धनुष। आघु=(संस्कृत आर्ह) मूल्य, आदर। बँकाई=टेढ़ापन। तुरंगम=घोड़ा।
गढ़ की रचना, पलक के बाल, लट, चितवन, भौंह, धनुष, नवयुवती, घोड़ा और तान—(इन सब) का मूल्य (आदर) टेढ़ाई से ही बढ़ता है।
नासा मोरि नचाइ जे करी कका की सौंह।
काँटे सी कसकैं ति हिय गड़ी कँटीली भौंह॥४८॥
अन्वय—नासा मोरि, जे नचाइ कका की सौंह करी। ति कँटीली भौंह, हिय गड़ी काँटे सी कसकैं।
नासा=नाक। मोरि=मोड़कर, सिकोड़कर। जे=जो (भौंह)। सौंह=शपथ, कसम। कसक=सालती है, टीसती है।
नाक सिकोड़कर जिस (भौंह) को नचाकर (उस नायिका ने) काका की