पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१
सटीक : बेनीपुरी
 

कसम खाई। (उस समय की) उसकी वह कटीली भौंह (अभी तक) हृदय में गड़ी हुई काँटे सी खटक रही है—चुम रही है।

खौरि-पनिच भृकुटी-धनुषु बधिकु-समरु तजि कानि।
हनतु तरुन-मृग तिलक-सर सुरक-भाल भरि तानि॥४९॥

अन्वय—खौरि-पनिच, भृकुटी-धनुषु, बधिकु-समरु कानि तजि, सुरक-भाल, तिलक-सर मरि तानि तरुन-मृग हनत।

खौरि=ललाट पर चंदन का आड़ा टीका, ललाट पर चंदन लेपकर उँग- लियों से खरोंचने पर खौर-तिलक बनता है। पनिच=धनुष की डोरी, प्रत्यंचा। समरु=स्मर=कामदेव। कानि=मर्यादा। तिलक=ललाट का खड़ा टीका। सुरक=तिलक का वह भाग जो नाक पर लगा होता है। भाल=तीर की गाँसी। भरि तानि=खूब तानकर।

खौर-रूपी प्रत्यंचा को भौंह-रूपी धनुष पर चढ़ाकर, व्याधा-रूपी कामदेव, (अपनी) मर्यादा छोड़, सुरक-रूपी गाँसी वाले तिलक-रूपी शर को, खूब खींचकर, नवयुवक-रूपी मृगों को मारता है।

रस सिंगार मंजनु किए कंजनु भंजन दैन।
अंजनु-रंजनु हूँ बिना खंजनु गंजनु नैन॥५०॥

अन्वय—सिंगार-रस भंजनु किए नैन कंजनु भंजनु दैन, बिना अंजनु-रंजनु हूँ खंजनु गंजनु।

श्रृंगार-रस में गोते लगाये हुए नेत्र कमलों के अभिमान तोड़नेवाले हैं और विना अंजन लगाये हुए भी वे खंजनों का घमंड चूर करते हैं---कमलों को परास्त और खंजरीटों को अपमानित करते हैं।

खेलन सिखए अलि भलैं चतुर अहेरी मार।
कानन-चारी नैन-मृग नागर नग्नु सिकार॥५१॥

अन्वय—अलि, चतुर अहेरी-मार कानन-चारी नैन-मृग नागर नरनु सिकार खेलन भलैं सिखए।

अलि=सखी। अहेरी=शिकारी। मार=कामदेव। कानन-चारी=कानों तक आने-जानेवाले, वन में विहारनेवाले। नागर=चतुर, शहरी। नरनु=पुरुषों का।