हैं। उन्हें देखकर मछली भी संकुचित हो जल में छिप जाती है और कमल लजित हो जाते हैं।
नोट—नेत्रों में लाल, काले और उजले रंग होते हैं। देखिये—
अमिय हलाहल मद भरे, स्वेत स्याम रतनार।
जियत मरत झुकि-झुकि गिरत, निहि चितवत इक बार॥
जोग-जुगुति सिखए सबै मनो महामुनि मैनु।
चाहतु पिय-अद्वैतता काननु सेवतु नैनु॥५४॥
अन्वय—मनो महामुनि मैनु सबै जोग-जुगुति सिखए नैनु पिय-अद्वैतता चाहतु, काननु सेवतु।
जोग=मिलन, योग। मनो=मानों। जुगुतु=युक्ति, उपाय। मैनु=कामदेव। पिय=प्रीतम, ईश्वर। अद्वैतता=मिलन, अभेद-भाव, अभिन्नता। काननु=कानों, जंगल। सिखये=सिखा दिया।
मानो महातपस्वी कामदेव ने योग (मिलन) की सारी युक्तियाँ बता दी हैं। इसीसे (उस नायिका के नेत्र) प्रीतम (ईश्वर) से सदा मिले रहने के लिए कानों तक बढ़ आये हैं, (वियोग-रहित अनन्त मिलने के लिए) वन- सेवन कर रहे हैं।
बर जीते सर मैन के ऐसे देखे मैं न।
हरिनी के नैनानु तैं हरि नीके ए नैन॥५५॥
अन्वय—मैन के सर-बर जीते ऐसे मैं न देखे, हरिनी के नैनानु तैं, हरि ए नैन नीके।
बर=बलपूर्वक। मैन=कामदेव। मैं न=मैं नहीं।
इन नेत्रों ने कामदेव के (अचूक) बाणों को भी बलपूर्वक जीत लिया है। मैंने तो ऐसे नेत्र (कभी) देखें ही नहीं। हे कृष्ण! हरिणियों के नैन से भी ये नेत्र सुन्दर हैं।
नोट--
खंजन कंजन सरि लहै बलि अलि को न बखान।
एनी की अँखियान ते नीकी अँखियान।---श्रृंगार-सतसई