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बिहारी-सतसई
२६
 

कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात॥६२॥

अन्वय—कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात, भरे भौन में नैननु ही सब बात करत हैं।

कहत=कहते हैं, इच्छा प्रकट करते हैं। नटत=नाहीं-नाहीं करते हैं। रीझत=प्रसन्न होते हैं। खिझत=खीजते हैं, रंजीदा होते हैं। खिलत=पुलकित होते हैं। लजियात=लजाते हैं।

कहते हैं, नाहीं करते हैं, रीझते हैं, खीजते हैं, मिलते हैं, खिलते हैं और लजाते हैं। (लोगों से) भरे घर में (नायक-नायिका) दोनों ही, आँखों ही द्वारा बातचीत कर लेते हैं।

सब अँग करि राखी सुघर नाइक नेह सिखाइ।
रस-जुत लेत अनत गति पुतरी-पातुर राइ॥६३॥

अन्वय—नेह-नाइक सिखाइ सब अंग करि सुघर राखी पुतरी-पातुर राइ रस-जुत अनंत गति लेत।

अँग=प्रकार। सुघर=सुचतुर, सुदक्ष। नाइक=नाचना-गाना सिखाने- वाला उस्ताद। पातुर=वेश्या। 'राय' वेश्याओं की उपाधि—जैसे प्रवीणराय वेश्या, जो केशवदास की साहित्यिक चेली थी। रस-जुत=रसीले। लेत अनन्त गति=अनेक प्रकार के पैंतरे और काँटछाँट करती है, तरह-तरह की भावभंगी ले थिरकती है।

प्रेम-रूपी उस्ताद ने सिखाकर उसे सब प्रकार से सुदक्ष बना रक्खा है। (फलतः वह आँखों की) पुतली-रूपी वेश्या रसों से भरे हुए नाना प्रकार के हाव-भाव दिखा रही है।

कंज नयनि मंजनु किये बैठी व्यौरति बार।
कच अँगुरी बिच दीठि दै चितवति नन्दकुमार॥६४॥

अन्वय—कंजनयनि मंजन किये बैठी बार ब्यौरति, कच अँगुरी बिच दीठि दै नन्दकुमार चितवति।

ब्यौरति=सुलझाती है। कच=बाल, केश। दीठि=दृष्टि, नजर।