पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बिहारी-सतसई
२८
 

लोइन=आँख। लोइन=लावण्य, सुन्दरता। पैरि=तैरकर।

हजार यत्न करने और हजार साहस रखने पर भी ये आँखें (तुम्हारे) शरीर-रूपी लावण्य-सागर को तैरकर पार नहीं पा सकतीं—तुम्हारा शरीर इतने अगाध-लावण्य से परिपूर्ण है!

पहुँचति डटि रन-सुभट लौं रोकि सकैं सब नाहिं।
लाखनुहूँ की भीर मैं आँखि उही चलि जाहिं॥६८॥

अन्वय—रन-सुभट लौं डटि पहुँचति, सब नाहिं रोकि सकैं, लाखनुहूँ की भीर मैं आँखि उहीं चलि जाहिं।

रन-सुभट=लड़ने में वीर।

लड़ाई के वीर योद्धा के समान डटकर पहुँच जाती हैं--लोग उन्हें नहीं रोक सकते। लाखों की भीड़ में भी (उसकी) आँखें उस (नायक की) ओर चली ही जाती हैं।

गड़ी कुटुम की भीर मैं रही बैठि दै पीठि।
तऊ पलकु परि जाति इत सलज हँसौंही डीठि॥६९॥

अन्वय—कुटुम की भीर मैं गड़ी पीठि दै बैठि रही, तऊ पलकु सलज हँसौंही डीठि इत परि जाति।

पलकु=पल+एकु=एक पल के लिए। इत=यहाँ, इस ओर। हँसौंही=प्रसन्न, विनोदिनी।

कुटुम्ब की भाड़ में गड़ी हुई—चारों ओर से परिवारवालों से घिरी हुई—(वह नायिका नायक की ओर) पीठ देकर बैठी है। तो भी एक क्षण के लिए (उसकी) लजीली और विनोदिनी दृष्टि इसकी ओर पड़ ही जाती है।

भौंह उँचै आँचरु उलटि मौरि मोरि मुँह मोरि।
नाठि नीठि भीतर गई दीठि दीठि सों जोरि॥७०॥

अन्वय—मौह उँचे, आँचरु उलटि, मौरि मोरि, मुँह मोरि। दीठि सों दीठि जोरि, नीठि-नीठि भीतर गई।

उँचै=ऊँचा करके। मौरि=मौलि, सिर। मोरि=झुकाकर। नीठि-नीठि=जैसे तैसे, मुश्किल से। नीठि नीठि गई=मुश्किल से धीरे-धीरे गई।