पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/५०

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to बिहारी-सतसई लोइन =आँख । लोइन = लावण्य, सुन्दरता । पैरि= तैरकर । हजार यन करने और हजार साहस रखने पर भी ये आँखें ( तुम्हारे ) शरीर-रूपी लावण्य-सागर को तैरकर पार नहीं पा सकतीं तुम्हारा शरीर इतने अगाध-लावण्य से परिपूर्ण है ! पहुँचति डटि रन-सुभट लौं रोकि सके सब नाहिं । लाखनुहूँ की भीर मैं आँखि उही चलि जाहिं ।। ६८ ॥ अन्वय-रन-सुभट लौं डटि पहुँचति, सब नाहिं रोकि सके, लाखनुहूँ की मीर मैं आँखि उहीं चलि जाहिं । रन-सुभट =लड़ने में वीर । लड़ाई के वीर योद्धा के समान डटकर पहुँच जाती हैं-लोग उन्हें नहीं रोक सकते । लाखों की भीड़ में भी ( उसकी) आँखें उस ( नायक की) ओर चली ही जाती हैं। गड़ी कुटुम की भीर मैं रही बैठि दै पीठि । तऊ पलकु परि जाति इत सलज हँसौंही डीठि ॥ ६९ ।। अन्वय-कुटुम की भीर मैं गड़ी पीठि दै वैठ रही, तऊ पलकु सलज हँसौंही डीठि इत परि जाति । पलकु = पल+एकु = एक पल के लिए । इत= यहाँ, इस ओर । हँसौं ही = विनोदिनी। कुटुम्ब की भाड़ में गड़ी हुई --चारों ओर से परिवारवालों से घिरी हुई- (वह नायिका नायक की ओर) पीठ देकर बैठी है। तो मी एक क्षण के लिए ( उसकी ) लजीली और विनोदिनी दृष्टि इसकी ओर पड़ ही जाती है भौंह उँचै आँचरु उलटि मौरि मोरि मुँह मोरि । नाठि नीठि भीतर गई दीठि दीठि सों जारि ॥ ७० ॥ अन्वय-मौह उँचे, आँचरु उलटि, मौरि मोरि, मुँह मोरि । दीठि सों दीठि जोरि, नीठि-नीठि भीतर गई। उँचै=ऊँचा करके । मौरि = मौलि, सिर । मोरि झुकाकर । नीठि-नीठि = जैसे तैसे, मुश्किल से । नीठि नीठि गई = मुश्किल से धीरे-धीरे गई। प्रसन्न, ।