.. २९ सटीक : बेनीपुरी मौंह ऊँची कर, आँचर उलट, सिर झुका और मुँह मोड़कर (वह नायिका) नजर-से-नजर मिलाती हुई धीरे-धीरे (घर के ) मीतर (चली) गई । ऐचति-सी चितवनि चित भई ओट अलसाइ । फिर उझकनि कौं मृगनयनि दृगनि लगनिया लाइ ।। ७१ ।। अन्वय-ऐचति-सी चितवनि चितै अलसाइ भोट मई, मृगनयनि फिरि उझकनि कौं लगनिया दृगनि लाइ । ऐंचति-सी खींचती हुई-सी, चित्ताकर्षक, चितचोर । चितवनि = दृष्टि, नजर । चितै = देखकर । दृगनि = आँखों का । लगनिया = लगन, चाट । अलसाइ = जंभाई लेकर, उभाड़ दिखाकर अथवा मन्द गति से । (चित्त को ) खींचती हुई-सी नजरों से देख वह अलसाकर ( आँख से) श्रोट तो हो गई; किन्तु उस मृगनयनी ने ( उस समय से) बार-बार उझक- उझककर देखने की लगन ( मेरी) आँखों में लगा दी-तब से बार-बार मैं उसक-उझककर उसकी बाट जोह रहा हूँ। सटपटाति सी मसिमुखी मुख घूघट-पटु ढाँकि । पावक-झर-सी झमकिक गई झरोखो भाँकि ।। ७२ ।। अन्वय-ससिमुम्बी सटपटाति-सी मुख चूँघट-पटु ढाँकि, पावक-झर-सी झमक्कैि झरोखो माँकि गई। पावक झर = आग की लपट । सटपटाति-सी = डरती हुई-सी। झमकिकै = नखरे की चाल से, गहनो की झनकार करके, चपलता से । डरती हुई-सी 1-वह चन्द्रवदनी (अपने ) मुख को बूंघट से ढंककर अग्नि की लपट-परीवी चंचलना के साथ झरोखे से झाँक गई। नोट-भाव यह है कि अपने गुरुजनों के डर से वह मुख पर आँचल डालकर झटपट खिड़की पर आई और ( नायक को ) देखकर चली गई । लागत कुटिल कटाच्छ मर क्यों न होहिं बेहाल । कढ़त जि हियहिं दुमाल करि तऊ रहत नटसाल ।। ७३ ।। अन्वय-कुटिल कटाच्छ सर लागत क्यों न बेहाल होहिं, जो हियो दुसाल करि कढ़त तऊ नटसाल रहत ।