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सटीक : बेनीपुरी
 

भौंह ऊँची कर, आँचर उलट, सिर झुका और मुँह मोड़कर (वह नायिका) नजर-से-नजर मिलाती हुई धीरे-धीरे (घर के) भीतर (चली) गई।

ऐंचति-सी चितवनि चितै भई ओट अलसाइ।
फिर उझकनि कौं मृगनयनि दृगनि लगनिया लाइ॥७१॥

अन्वय—ऐंचति-सी चितवनि चितै अलसाइ ओट भई, मृगनयनि फिरि उझकनि कौं लगनिया दृगनि लाइ।

ऐंचति-सी=खींचती हुई-सी, चित्ताकर्षक, चितचोर। चितवनि=दृष्टि,नजर। चितै=देखकर। दृगनि=आँखों का। लगनिया=लगन, चाट। अलसाइ=जँभाई लेकर, उभाड़ दिखाकर अथवा मन्द गति से।

(चित्त को) खींचती हुई-सी नजरों से देख वह अलसाकर (आँख से) ओट तो हो गई; किन्तु उस मृगनयनी ने (उस समय से) बार-बार उझक-उझककर देखने की लगन (मेरी) आँखों में लगा दी—तब से बार-बार मैं उझक-उझककर उसकी बाट जोह रहा हूँ।

सटपटाति सी ससिमुखी मुख घूँघट-पटु ढाँकि।
पावक-झर-सी झमकिकै गई झरोखौ भाँकि॥७२॥

अन्वय—ससिमुखी सटपटाति-सी मुख घूँघट-पटु ढाँकि, पावक-झर-सी झमकिकै झरोखौ झाँकि गई।

पावक झर=आग की लपट। सटपटाति-सी=डरती हुई-सी। झमकिकै=नखरे की चाल से, गहनो की झनकार करके, चपलता से।

डरती हुई-सी—वह चन्द्रवदनी (अपने) मुख को घूँघट से ढँककर अग्नि की लपट-सरीखी चंचलता के साथ झरोखे से झाँक गई।

नोट—भाव यह है कि अपने गुरुजनों के डर से वह मुख पर आँचल डालकर झटपट खिड़की पर आई और (नायक को) देखकर चली गई।

लागत कुटिल कटाच्छ भर क्यों न होहिं बेहाल।
कढ़त जि हियहिं दुसाल करि तऊ रहत नटसाल॥७३॥

अन्वय—कुटिल कटाच्छ सर लागत क्यौं न बेहाल होहिं, जो हियो दुसाल करि कढ़त तऊ नटसाल रहत।