बिहारी-सतसई ३० कुटिल =तिरछे, टेढ़े । कयाक्ष= तीक्ष्ण दृष्टि, बाँकी-तिरछी नजर । कढ़त = निकलना । हियो हृदय । दुसाल =दो भाग, आरपार । तऊ=तो भी। नटसाल = काँटे का वह हिस्सा जो काँटा निकाल लेने पर भी टूटकर अन्दर ही रह जाता है। तिरछे कटाक्ष-रूपी ( चोखे ) बाण के लगने से ( लोग) क्यों न व्याकुल हो ? यद्यपि (बाण ) हृदय को पारपार करके निकल जाता है, तथापि उसकी नुकीली गाँसी की कसक (पीड़ा ) रह ही जाती है । नैन-तुरंगम अलक-छबि-छरी लगी जिहिं आइ । तिहिं चढ़ि मन चंचल भयौ मति दीनी बिसराइ ।। ७४ ॥ अन्वय-नैन-तुरंगम, जिहिं अलक -छबि-छरी आइ लगी, तिहिं चढ़ि मन चंचल भयौ मति बिसराइ दीनी । तुरंगम= चंचल घोड़ा । अलक = लट । छरी=कोड़ा। बिसराय दीनी = विस्मृत कर दिया, भुला दिया । नेत्र-रूपी घोड़े, जिन्हें लट की शोमा-रूपी छड़ी श्राकर लगी है-जो नायिका की लट-रूपी चाबुक खाकर उत्तेजित हुए हैं-उन (नेत्र-रूपी घोड़ों) पर चढ़कर मेरा मन चंचल हो गया है और उसने मेरी बुद्धि नष्ट कर दी है। नीचीयै नीची निपट दीठि कुही लौं दौरि । उठि ऊँचैं नीचे दियौ मन-कुलंग झपिझोरि ॥ ७५ ॥ अन्वय-दीठि कुही लौं निपट नीचीय नीची दौरि, ऊँचै उठि मन-कुलंग झपिझोरि नीचे दयौ। निपट = एकदम । डीठि =दृष्टि, नजर । कुही=एक पक्षी, जो बाज की जाति का होता है । लौं =समान । कुलंग= कलविंक = चटका =गोरैया, बगेरी । उठि ऊँचे-ऊपर उड़कर । नीचे दियो= मार गिराया । ( उसकी) नजर ने कुही-पक्षी के समान एकदम नीचे-ही-नीचे दौड़कर और ( फिर ) ऊँचे चढ़ मेरे मन-रूपी कुलंग को छोपकर और झोस्कर नीचे गिरा दिया। नोट-कुही पक्षी शिकार को पकडने के लिए पहले तो नीचे-ही-नीचे ।