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बिहारी-सतसई
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कुटिल=तिरछे, टेढ़े। कटाक्ष=तीक्ष्ण दृष्टि, बाँकी-तिरछी नजर। कढ़त=निकलना। हियो=हृदय। दुसाल=दो भाग, आरपार। तऊ=तो भी। नटसाल=काँटे का वह हिस्सा जो काँटा निकाल लेने पर भी टूटकर अन्दर ही रह जाता है।

तिरछे कटाक्ष-रूपी (चोखे) बाण के लगने से (लोग) क्यों न व्याकुल हो? यद्यपि (बाण) हृदय को आरपार करके निकल जाता है, तथापि उसकी नुकीली गाँसी की कसक (पीड़ा) रह ही जाती है।

नैन-तुरंगम अलक-छबि-छरी लगी जिहिं आइ।
तिहिं चढ़ि मन चंचल भयौ मति दीनी बिसराइ॥७४॥

अन्वय—नैन-तुरंगम, जिहिं अलक-छबि-छरी आइ लगी, तिहिं चढ़ि मन चंचल भयौ मति बिसराइ दीनी।

तुरंगम=चंचल घोड़ा। अलक=लट। छरी=कोड़ा। बिसराय दीनी=विस्मृत कर दिया, भुला दिया।

नेत्र-रूपी घोड़े, जिन्हें लट की शोभा-रूपी छड़ी आकर लगी है—जो नायिका की लट-रूपी चाबुक खाकर उत्तेजित हुए हैं—उन (नेत्र-रूपी घोड़ों) पर चढ़कर मेरा मन चंचल हो गया है और उसने मेरी बुद्धि नष्ट कर दी है।

नीचीयै नीची निपट दीठि कुही लौं दौरि।
उठि ऊँचैं नीचै दियौ मन-कुलंग झपिझोरि॥७५॥

अन्वय—दीठि कुही लौं निपट नीचीयै नीची दौरि, ऊँचैं उठि मन-कुलंग झपिझोरि नीचे दयौ।

निपट=एकदम। डीठि=दृष्टि, नजर। कुही=एक पक्षी, जो बाज की जाति का होता है। लौं=समान। कुलंग=कलविंक=चटका=गोरैया, बगेरी। उठि ऊँचे-ऊपर उड़कर। नीचे दियो=मार गिराया।

(उसकी) नजर ने कुही-पक्षी के समान एकदम नीचे-ही-नीचे दौड़कर और (फिर) ऊँचे चढ़ मेरे मन-रूपी कुलंग को छोपकर और झोरकर नीचे गिरा दिया।

नोट—कुही पक्षी शिकार को पकड़ने के लिए पहले तो नीचे-ही-नीचे