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बिहारी-सतसई
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नाज छूटती है और न (देखने का) लालच ही छोड़ते बनता है। यों संकोच और प्रेम से परिपूर्ण उस नायिका के नेत्र अत्यन्त व्याकुल हो रहे हैं।

नोट—इस दोहे में स्वाभाविकता खूब है।

करे चाह-सौं चुटकि कै खरै उड़ौहैं मैन।
लाज नवाएँ तरफरत करत खूँद-सी नैन॥७९॥

अन्वय—मैन चाह सों चुटकि कै खरैं उड़ौहैं करे, लाज नवाएँ नैन तरफरत खूँ-सी करत।

चुटकि कै=चाबुक मारकर। उड़ौहैं=उड़ाकू, उड़ान भरनेवाला। मैन=कामदेव। खूँद=जमैती, घोड़े की ठुमुक चाल।

कामदेव ने चाह का चाबुक मारकर नेत्रों को बड़ा उढ़ाकू बना दिया है। किन्तु लाज (लगाम) से रोके जाने के कारण उसके नेत्र (रूपी-घोड़े) तड़फड़ाकर जमैती-सी कर रहे हैं।

नोट—जब घोड़े को जमैती सिखाई जाती है, तब एक आदमी पीछे चाबुक फटकारकर उसे उत्तेजित करता रहता है और दूसरा आदमी उसकी लगाम कसकर पकड़े रहता है। यों घोड़ा पीछे की उत्तेजना और आगे की रोक थाम से छटपटाकर जमैती करने लगता है।

नावक-सर-से लाइकै तिलकु तरुनि इत ताँकि।
पावक-झर-सी झमकिकै गई झरोखा भाँकि॥८०॥

अन्वय—नावक-सर-से तिलकु लाइकै तरुनि इत ताँकि, पावक झर-सी झमकिकै झरोखा झाँकि गई।

तिलकु=टीका। तरुनि=नवयुवती। पावक-झर=आग की लपट। भगवा=खिड़की। झमकिकै=चंचल चरणों से। नावक-सर=एक प्रकार का छोटा चुटीला तीर, जो बाँस की नली के अंदर से चलाया जाता है, ताकि सीधे जाकर गहरा घाव करे।

चुटीले तीर के समान (ललाट पर) तिलक लगाकर उस नवयुवती ने इस ओर देखा और आग की ज्वाला-सी चंचलता के साथ खिड़की से झाँक गई।