३३ सटीक ; बेनीपुरी नोट-नावक के तीर' बिहारी के दोहों के विषय में प्रसिद्ध है-) सतसेया के दोहरे जनु नावक के तीर । देखत में छोटे लगें वेधैं सकल सरीर ।। अनियारे दीरघ दृगनु किती न तरुनि ममान । वह चितवनि और कछू जिहिं बस होत सुजान ॥ ८१ ॥ अन्वय-किती तरुनि अनियार दीरव गनु समान न, जिहिं बस सुजान होत वह चितवन कछु और अनियारे = नुकीली । दीरघबड़ी। दृगनु = आँखें । निहिं =जिसके । मुजान =रमिक। . कितनी युवतियों की नुकीली और बड़ी-बड़ी आँख एक-सी नहीं हैं- बहुत-सी युवतियों की आँखें बड़ी-बड़ी और नुकीली है-किन्तु रसिक-जन को वशीभूत करनेवाली वह रसीली नजर कुछ और ही होती है ! चमचमात चंचल नयन विच चूंघट-पट झीन । मानहु मुरमरिता-विमल-जल उठरत जुग मीन ।। ८२ ।। अन्वय-श्रीन चूँवट पट बिच चंचल नयन चमचमात, मानहु मुरमरिना बिमन जल जुग मीन उरत चूंघट पट =घूघट का कपड़ा । झीन = बारीक, महीन । मुग्सरिता= गंगा। जुग = दो । मीन =मछली । उसरत = उछलती है । बारीक कपड़े के चूंघट की भोट से ( उसकी ) चंचल आँख चमक रही है- मनाक रही है, मानो गंगाजी के स्वच्छ जल में दो मछलियाँ उछल रही हैं। फूले फदकन लै फरी पल कटाच्छ करवार । करत बचावत विय नयन पाइक घाइ हजार ।। ८३ ।। अन्वय-बिय नयन-पाइक पल-फरी कटाच्छ करवार लै फूले फदकत हजार घाइकरत बचावत। फूले = उमंग से भरकर । फदकत= पतरे बदलते हैं। फरी=ढाल । पल = करवार = करवाल = तलवार । विय =दोनों । पाइक = पैदल सिपाही । घाई-घाव, चार । ३ पलक