नोट—'नावक के तीर' बिहारी के दोहों के विषय में प्रसिद्ध है-
सतसैया के दोहरे जनु नावक के तीर।
देखत में छोटे लगैं बेधैं सकल सरीर॥
अनियारे दीरघ दृगनु कितीं न तरुनि समान।
वह चितवनि औरे कछू जिहिं बस होत सुजान॥८१॥
अन्वय—किती तरुनि अनियारे दीरघ दृगनु समान न, जिहिं बस सुजान होत वह चितवन कछु औरै।
अनियारे=नुकीली। दीरघ=बड़ी। दृगनु=आँखें। निहिं=जिसके। सुजान=रसिक।
कितनी युवतियों की नुकीली और बड़ी-बड़ी आँखें एक-सी नहीं हैं—बहुत-सी युवतियों की आँखें बड़ी-बड़ी और नुकीली है—किन्तु रसिक-जन को वशीभूत करनेवाली वह रसीली नजर कुछ और ही होती है!
चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट-पट झीन।
मानहु सुरसरिता-विमल-जल उछरत जुग मीन॥८२॥
अन्वय—झीन घूँघट पट बिच चंचल नयन चमचमात, मानहु सुरसरिता-विमल-जल जुग मीन उछरत।
घूँघट पट=घूँघट का कपड़ा। झीन=बारीक, महीन। सुरसरिता=गंगा। जुग=दो। मीन=मछली। उसरत=उछलती है।
बारीक कपड़े के घूँघट की ओट से (उसकी) चंचल आँखें चमक रही है-- झलक रही है, मानो गंगाजी के स्वच्छ जल में दो मछलियाँ उछल रही हैं।
फूले फदकत लै फरी पल कटाच्छ करवार।
करत बचावत विय नयन पाइक घाइ हजार॥८३॥
अन्वय—बिय नयन-पाइक पल-फरी कटाच्छ करवार लै फूले फदकत हजार घाइ करत बचावत।
फूले=उमंग से भरकर। फदकत=पैंतरे बदलते हैं। फरी=ढाल। पल=पलक। करवार=करवाल=तलवार। विय=दोनों। पाइक=पैदल सिपाही। घाई=घाव, चार।
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