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बिहारी-सतसई
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(उसके) दोनों नेत्र-रूपी सिपाही पलक-रूपी ढाल और कटाक्ष-रूपी तलवार लेकर सानन्द पैंतरे बदलते तथा हजारों वार करते और बचाते हैं।

जदपि चबाइनु चीकनी चलति चहूँ दिसि सैन।
तऊ न छाड़त दुहुन के हँसी रसीले नैन॥८४॥

अन्वय—जदपि चबाइनु चीकनी चहूँ दिसि सैन चलति, तऊ दुहुन के रसीले नैन हँसी न छाड़त।

चबाइनु चीकनी=निंदा से भरी। तऊ=तो भी। सैन=इशारे। हँसी=उमंग-भरी छेड़छाड़।

यद्यपि उसपर चारों ओर से निंदा-भरे इशारे चल रहे हैं—लोग इशारे कर-करके उसकी निंदा कर रहे हैं—तो भी दोनों की रसीली आँखे हँसी (चुहलबाजी) नहीं छोड़तीं।

जठित नीलमनि जगमगति सींक सुहाई नाँक।
मनौ अली चंपक-कली बसि रसु-लेतु निसाँक॥८५॥

अन्वय—नीलमनि जटित सींक जगमगति सुहाई नाँक, मनौ अली चंपक-कली बसि निसाँक रसु लेतु।

जटित=जड़ी हुई। नीलमनि=नीलम! सींक=स्त्रियों की नाक में पहनने का एक आभूषण विशेष, जिसे लौंग या छुच्छी भी कहते हैं। निसाँक=नि:शंक, बेधड़क। रसु लेतु=आनन्द लूट रहा है, रस चूस रहा है।

नीलम से जड़ी लौंग (उसकी) सुन्दर नाक में जगमग करती है, मानो भौंरा चम्पा की कली पर निःशंक बैठकर रस पी रहा हो।

नोट—गोरी की नाक चम्पा की कली है, नीलम-जड़ी लौंग भौंरा है। भौंरा चम्पा के पास नहीं जाता; पर कवि ने असम्भव को सम्भव कर दिया है।

बेधक अनियारे नयन बेधत करि न निषेधु।
बरबट बेधत मो हियौ तो नासा कौ बेधु॥८६॥

अन्वय—बेधक अनियारे नयन बेधत निषेधु न करि, तो नासा को बेधु भो हियौ बरबट बेधत।