बिहारी-सतसई ४० साहितैषिणी सखी ने-'इस लावण्ययुक्त मुखड़े पर कहीं किसीकी नजर न लग जाय' ( ऐसा ) कहकर डिठौना लगा दिया। किन्तु उस गोरे मुखड़े पर काजल का काला डिठौना देने से लोगों की की नजर दुगुनी होकर लगने लगी- लोग और मी चाव से घूरने लगे। पिय तिय सों हँसिकै कयौ लखै दिठौना दीन । चन्द्रमुखी मुख चन्दु तैं भलौ चन्द सम कीन ॥ ९९ ॥ अन्वय-दिठौना दीन लखें, पिय तिय सो हँसिकै कह्यौ, चन्द्रमुखी चन्द सम कीन, मुख चन्दु तैं मलौ । सों से । दिठौना दीन =डिठौना लगाये ते-से | डिठौना लगाये हुए देखकर प्रीतम ने अपनी प्रियतमा से हँसकर कहा- हे चन्द्रमुखी ! ( काला डिठौना लगाकर ) चन्द्रमा के समान (धब्बेदार ) कलंकित बना लेने पर भी, ( तुम्हारा ) मुख, चन्द्रमा से अच्छा ही है । गड़े बड़े छबि-छाकु छकि छिगुनी छोर छुटै न । रहे सुरंग रंग रॅगि वही नह दी मँहदी नैन ।। १०० ॥ अन्वय-छबि छाकु छकि बड़े छिगुनी छोर छुटै न; वही नह दी मँहदी सुरंग रँग नैन रंगि रहे । छबि= शोभा । छाकु =नशा । छकि = भर-पेट पीकर । छिगुनी = कनिष्ठा अंगुली, कनगुरिया । सुरग=लाल । नह दी =नँह में दी गई, नख में लगाई गई । मँहदी=मेंहदी। किमी सौंदर्य की मदिरा पीकर खूब ही गड़ रहे हैं, छिगुनी की छोर छोड़ते ही नहीं। यहाँतक कि उसी ( छिगुनी के ) नँह में लगी मेंहदी के लाल रंग में ये नेत्र रंग भी गये हैं उसके ध्यान में लाल भी हो गये हैं ! । I hop =