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सटीक : बेनीपुरी
 

द्वितीय शतक

सूर उदित हूँ मुदित मन मुखु सुखमा की ओर।
चितै रहत चहुँ ओर तें निहचल चखनु चकोर॥१०१॥

अन्वय—सूर उदित हूँ, मुदित मन, मुखु सुखमा की ओर, चकोर निहचल चखनु चहुँ ओर तें चितै रहत।

सूर=सूर्य। सुखमा=सौंदर्य, शोभा। निहचल चखनु=अटल दृष्टि से, टकटकी लगाकर।

सूर्य के उदय हो जाने पर भी आनन्दित मन से उसके मुख के सौंदर्य की ओर (उसे चन्द्र-मंडल समझकर) चकोर टकटकी लगाये चारों ओर से देखता रहता है।

पत्राहीं तिथि पाइयै वा घर कैं चहुँ पास।
नित प्रति पून्यौई रहत आनन-ओप उजास॥१०२॥

अन्वय—वा घर कैं चहुँ पास पत्रा हीं तिथि पाइयै, आनन ओप-उजास नित प्रति पून्यौई रहत।

पत्रा=तिथिपत्र। नित प्रति=हर रोज। पून्यौई=पूर्णिमासी ही। आनन=मुख। ओप=चमक। उजास=प्रकाश।

उस नायिका के घर के चारों ओर पत्रा (पंचांग) ही में तिथि पाई जाती है—तिथि निश्रय कराने के लिए पत्रा ही की शरण लेनी पड़ती है; क्योंकि (उसके) मुख की चमक और प्रकाश से वहाँ सदा पूर्णिमा ही बनी रहती है--उसके मुख की चमक और प्रकाश देखकर लोग भ्रम में पड़ जाते हैं कि पूर्ण चन्द्र की चाँदनी छिटक रही है।

नैकु हँसौंही बानि तजि लख्यो परतु मुँहु नीठि।
चौका-चमकनि-चौंध मैं परति चौंधि-सी डीठि॥१०३॥

अन्वय—नैकु हँसौंही बानि तजि, मुँह नीठि लख्यौ परतु; चौका-चमकनि-चौंध में डीठि चौंधि-सी परति।