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बिहारी-सतसई
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ससहरि गयौ=सिहर जाना, डर गया। सूरु=शूर, वीर। मुरवान=पाँव का वह भाग जहाँ पर कड़े, छड़े, पाजेब आदि गहने पहने जाते हैं, सुपवा। चूरन=चूरा का बहुवचन, कड़े। चँपि = दबकर।

दिठाई से साहस किये रहा। डरा नहीं, मुड़ा भी नहीं। वीर के समान डटा रहा। भले ही मेरा वह मन मुरबों में चिपक, कड़ों से चँपकर, चूर हो गया।

पाइ महावरु दैन कौं नाइनि बैठी आइ।
फिरि फिरि जानि महावरी एड़ी मीड़ति जाइ॥१०९॥

अन्वय—पाइ महावरु दैन को नाइनि आइ बैठी, फिरि फिरि एड़ी महावरी जानि मीड़ति जाइ।

महावरी=महावर लगी हुई। फिरि फिरि=बार-बार।

(उस नायिका के) पाँव में महावर लगाने के लिए नाइन आ बैठी। किन्तु (उसकी एँड़ी स्वाभाविक रूप से इतनी लाल थी कि) वह बराबर उसे महावर लगी हुई जानकर माँज-माँजकर धोने लगी।

नोट—पैरों में महावर लगाने के पूर्व पहले की लगी हुई महावर धो दी जाती है।

कौहर-सी एड़ीनु की लाली देखि सुभाइ।
पाइ महावर देइ को आपु भई बे-पाइ॥११०॥

अन्वय—कौहर-सी एड़ीनु की सुमाइ लाली देखि पाइ महावरु को देइ, आप बे-पाइ भई।

कोहर=एक जंगली लाल फल। सुभाय=स्वाभाविक। देह को=कौन दे, कौन लगावे। बे-पाय=हक्का-बक्का, विस्मय-विमुग्ध।

लाल कोहर फल के समान उसकी एँड़ियों की स्वाभाविक लाली देखकर, पैर में महावर कौन लगावे? नाइक स्वयं हक्का-बक्का (किंकर्त्तव्यविमूढ) हो गई!

किय हाइलु चित चाइ लगि बजि पाइल तुव पाइ।
पुनि सुनि सुनि मुँह-मधुर-धुनि क्यों न लालु ललचाइ॥१११॥

अन्वय—तुम पाइ पाइल बाजि चित चाइ लगि हाइलु किय, पुनि, मुँह-मधुर-धुनि सुनि सुनि लालु क्यों न ललचाइ।

हाइलु=घायल। चाय=चाह, चाट। पायल=पाजेब।