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सटीक : बेनीपुरी
 

तेरे पैरों की पाजेब बजकर चित्त में चाह उत्पन्न करती और घायल बनाती है। फिर मुख की मीठी बोली सुन-सुनकर लाल (नायक) क्यों न लालच में पड़ जाय?

सोहत अँगुठा पाइ कै अनुवटु जर्यौ जराइ।
जीत्यौ तरिवन-दुति सुढरि पर्यौ तरनि मन पाइ॥११२॥

अन्वय—जराइ जर्यौ पाइ कै अँगुठा अनवटु सोहत, मनु तरिवन-दुति जीत्यौ तरनि सुढरि पाइ पर्यौ।

पाइ के=पैर के। अनवटु=पैर के अँगूठे में पहनने का आभूषण-विशेष। बराइ=जड़ाव, नगीना। तरिवन=कर्णफूल। तरनि=सूर्य।

नगीने जड़ा हुआ पैर के अँगूठे का अनवट शोभ रहा है। (वह ऐसा लगता है) मानो कर्णफूलों की प्रभा से पराजित हो सूर्य उस (नायिका) के पाँवों पर लुढ़क पड़ा हो!

पग पग मग अगमन परत चरन-अरुन-दुति झूलि।
ठोर ठौर लखियत उठे दुपहरिया-से फूलि॥११३॥

अन्वय—मग पग पग अगमन चरन-अरुन-दुति झूलि परत, लखियत ठौर ठौर दुपहरिया-से फूलि उठे।

अगमन=आगे की ओर। अरुन=लाल। दुति=चमक। दुपहरिया=एक प्रकार का लाल फूल।

पथ में पग-पग पर आगे की ओर (जहाँ पैर पड़ने को हैं) पैर की लाल प्रमा झड़-सी पड़ती है—जहाँ वह अपना पैर उठाकर रखना चाहती है, वहीं उसके तलवे की लाली पृथ्वी में प्रतिबिम्बित होने लगती है—(वह ऐसी) देख पड़ती है, मानो जगह-जगह दुपहरिया के (लाल-लाल) फूल फुल उठे हों!

दुरत न कुच बिच कंचुकी चुपरी सारो सेत।
कवि-आँकनु के अरथ लौं प्रगटि दिखाई देत॥११४॥

अन्वय—चुपरी सेत सारी कंचुकी बिच कुच न दुरत, कवि-आँकनु के अरथ लौं प्रगटि दिखाई देत।