पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/६५

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- । ४५ सटीक : बेनीपुरी तेरे पैरों की पाजेब बजकर चित्त में चाह उत्पन्न करती और घायल बनाती है । फिर मुख की मीठी बोजी सुन-सुनकर लाल (नायक ) क्यों न लालच में पड़ जाय ? सोहत अँगुठा पाइ के अनुवटु जरयौ जराइ । जीत्यौ तरिवन-दुति सुढरि पन्यौ तरनि मन पाइ ॥ ११२ ।। अन्वयः -जराइ जस्यो पाइ के अंगुठा अनवटु सोहत , मनु तरिवन-दुति जीत्यौ तरनि सुढरि पाइ पस्यौ । पाइ के=पैर के। अनवटु =पैर के अंगूठे में पहनने का आभूषण-विशेष । बराइ=जड़ाव, नगीना । तरिवन = कर्णफूल । तरनि=सूर्य । नगीने जड़ा हुआ पैर के अँगूठे का अनवट शोम रहा है। (वह ऐसा लगता है) मानो कर्णफूलों की प्रभा से पराजित हो सूर्य उस ( नायिका) के पाँवों पर लुढ़क पड़ा हो ! पग पग मग अगमन परत चरन-अरुन-दुति झूलि । ठोर ठौर लखियत उठे दुपहरिया-से फूलि ॥ ११३ ॥ अन्वय-मग पग पग अगमन चरन-अरुन-दुति झलि परत, लखियत ठौर ठौर दुपहरिया से फूलि उठे। अगमन = आगे की ओर । अस्न = लाल । दुति = चमक । दुपहरिया = एक प्रकार का लाल फूल । पथ में पग-पग पर आगे की ओर (जहाँ पैर पड़ने को हैं ) पैर की लाल प्रमा झड़-सी पड़ती है-जहाँ वह अपना पैर उठाकर रखना चाहती है, वहीं उसके तलवे की लाली पृथ्वी में प्रतिविम्बित होने लगती है-(वह ऐसी ) देख. पड़ती है, मानो जगह-जगह दुपहरिया के ( लाल-लाल) फूल फुल उठे हों ! दुरत न कुच विच कंचुकी चुपरी सारो सेत । कवि-आँकनु के अरथ लौं प्रगटि दिखाई देत ।। ११४ ।। अन्वय-चुपरी सेत सारी कंचुकी बिच कुच न दुरत, कवि-प्राँकनु के अथ ली प्रगटि दिखाई देत। .