पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/६९

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सटीक : बेनीपुरी
 

है। जल-चादर के अन्दर रक्खे हुए दीपक के समान (उस पंचतोरिया के भीतर से उसके) शरीर की कान्ति जगमगाने लगती है।

नोट--जल-चादर = राजाओं के बाग में पहले ऐसी सजावट होती थी कि फब्बारे से होकर चादर की तरह पानी गिरता था, और उसके बीच में दीपक रक्खे जाते थे, जो अलग से झलमलाते-से देख पड़ते थे।

मालति है नटसाल-सी क्यौहूँ निकसत नाँहि।
मनमथ-नेजा-नोक सी खुभी खुभी जिय माँहि ॥१२२॥

अन्वय--मनमथ-नेजा-नोक-सी खुभी जिय माँहि खुभी नटसाल-सी सालति है, क्यौंहूँ नाँहि निकसति।

सालति = चुभती है, पीड़ा पहुँचा रही है। नटसाल = बाण की नोक का वह तिरछा भाग, जो टूटकर शरीर के भीतर ही रह जाता है। मनमथ = कामदेव। नेजा = कटार। खुभी = लौंग के आकार का एक प्रकार का कान का गहना। खुभी = गड़ी।

कामदेव के कटार की नोक के समान (नायिका के कानों की) खुभी (मेरे) मन में गढ़ गई है। बाण की टूटी हुई गाँसी की तरह पीड़ा पहुँचा रही है---किसी प्रकार नहीं निकलती।

अजौं तर्यौना ही रह्यौ स्रुति सेवत इकरंग।
नाक-बास बेसरि लह्यौ बसि मुकुतनु कैं संग ॥१२३॥

अन्वय--इकरंग स्त्रुति सेवत अर्जौ तर्यौना ही रह्यो, मुकुतनु कैं संग बसि बेसरि नाक-बाम लह्यौ।

अजौं = आज भी। तर्यौना = (१) कर्णफूल (२) तर्यौ + ना = नहीं तरा। स्त्रुति = (१) श्रुति, वेद (२) कान। इकरंग = एक मात्र, एक ढंग से। नाक (१) नासिका (२) स्वर्ग। बेसरि = (१) नाक का भूषण, झुलनी, खच्चर। (२) बे+सरि =जिसकी समानता न हो, अनुपम। मुकुतनु= (१) मुक्ता (२) मुक्त लोग, महात्मा।

श्लेषार्थ--एकमात्र वेद ही की सेवा करने से--सत्संग न कर केवल वेद ही पढ़ते रहने से--कोई अभी तक नहीं तरा। (किन्तु) मुक्तात्माओं--जीवनमुक्त