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बिहारी-सतसई
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महात्माओं--की सत्संगति से अनुपम स्वर्ग का घास (बहुतों ने पाया)।

एकमात्र (एक ढंग से) कानों को सेते रहने से आज भी यह 'कर्णफूल' कर्णफूल ही रह गया। (किन्तु) मुक्ताओं की संगति करके बेसर ने नाक का सहवास पा लिया।

नोट--इस दोहे में भी बिहारी ने श्लेष का अपूर्व चमत्कार दिखलाया है। कविवर रसलीन ने भी एक ऐसा ही दोहा कहा है--

ठग तस्कर स्त्रुति सेइके लहत साधु परमान।
ये खुटिला स्त्रुति सेइके खुटिलै रही निदान॥

(सो०) मंगल बिन्दु सुरंगु, मुख ससि केसरि आड़ गुरु।
इक नारी लहि संगु, रसमय किय लोचन जगत ॥१२४॥

अन्वय--सुरंग-बिन्दु मंगल, मुख ससि, केसरि आड़ गुरु, इक नारी संगु लहि जगत-लोचन रसमय किया।

सुरंगु = लाल। आड़ = टीका। गुरु = बृहस्पति। रसमय = तृप्तिमय, रसयुक्त, जलमय।

(ललाट में लगी) लाल बेंदी 'मंगल' है। मुख 'चन्द्रमा' है। केसर का (पीला) टीका 'बृहस्पति' है। (यों मंगल, चन्द्रमा और बृहस्पति--तीनों ने) एक स्त्री का संग पाकर--स्त्री-योग में पड़कर--संसार के लोचनों को सरस (शीतल) कर दिया है।

नोट--ज्योतिष के अनुसार मङ्गल, चन्द्रमा और बृहस्पति के एक नाड़ी में आ जाने से खूब वर्षा होती है। मङ्गल का रंग लाल, चन्द्रमा का श्वेत और बृहस्पति का पीला कहा गया है।

गोरी छिगुनी नखु अरुनु छला स्यामु छबि देइ।
लहत मुकुति-रति पलकु यह नैन त्रिबेनी सेइ ॥१२५॥

अन्वय--गोरी छिगुनी, अरुनु नखु, स्यामु छला छबि देइ, नैन यह त्रिबेनी सेइ पलकु मुकुति रति लहत।

छिगुनी = कनिष्ठा अँगुली। छला = छल्ला, अँगूठी। मुकुति = मुक्ति, मोक्ष। रति = प्रीति। पलकु = एक क्षण।