पगन=पाँवों में। साजियतु=सजता है, बढ़ाता है।
शरीर में गहने, आँखों में काजल, पाँवों में महावर का रंग--ये सब केवल कहने-भर के ही (श्रृंगार के) अंग हैं, ये शोभा की सामग्री नहीं हैं--इनसे शोभा की वृद्धि नहीं होती।
नोट--एक उर्दू कवि ने कहा है--
नहीं मुहताज जेवर का जिसे खूबी खुदा ने दी।
कि देखो खुशनुमा लगता है जैसे चाँद बिन गहना॥
पाइ तरुनि-कुच-उच्च पदु चिरम ठग्यौ सब गाँउ।
छुटैं ठौरु रहिहै वहै जु हो मोल छबि नाँउ ॥१२९॥
अन्वय--तरुनि-कुच-उच्च पद पाइ चिरम सब गाँउ ठग्यौ, ठौर छुटैं वहै मोल, छबि, नाँउ रहिहै जु हो।
चिरम=गुंजा, करजनी। ठौर=स्थान। वहै=वही। जु हो=जो वास्तव में है। मोल=दाम। नाँउ=नाम।
नवयुवती के स्तनों पर ऊँचा स्थान पाकर गुंजे ने समूचे गाँव को ठग लिया--सभी को भ्रम हो गया कि हो न हो, यह मूँगा है। किन्तु (वह) स्थान छूटने पर नवयुवती के गले से उतर जाने पर--वही (स्वल्प) मूल्य, वही (भद्दी) शोभा और वही (गुंजा) नाम रह जायगा, जो (वास्तव में) है।
उर मानिक की उरबसी डटत घटतु दृग-दागु।
छलकतु बाहिर भरि मनौ तिय हिय कौ अनुरागु ॥१३०॥
अन्वय--उर मानिक की उरबसी डटत दृग-दागु घटतु मनौ तिय हिय कौ अनुरागु बाहिर भरि छलकतु।
उरबसी=गले में पहनने का एक आभूषण, मणिमाला, हैकल, चौंका। डटत=देखते। दृग-दागु=आँखों की जलन। अनुरागु=प्रेम (अनुराग "प्रेम" का रंग भी माणिक्य की तरह लाल माना गया है)
हृदय पर मणिमाला देखते ही आँखों की जलन घट जाती है। (वह ऐसी दीख पड़ती है) मानो (उस) नायिका के हृदय का प्रेम बाहर होकर झलक रहा है।