पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/७९

विकिस्रोत से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५९ सटीक : बेनीपुरी है । (फलतः) अंग में लगी हुई केसर अपनी सुगंध से ही पहिचानी जाती है। अंग अंग नग जगमगत दीपसिखा-सी देह । दिया बढ़ाएँ हू रहे बड़ो उज्यारो गेह ॥ १४७ ॥ अन्वय-दीपसिखा-सी देह अंग अंग नग जगमगत, दिया बढ़ाएँ हू गेह बड़ो उज्यारी रहै। नग= आभूषणों में जड़े हुए नगीने । दीपसिखा =दीपशिखा, दीपक की टेम या लो। दिया बड़ाऐं हू =दीपक को बुझाने पर भी। उज्यारो= उजेला । दीपक की लौ के समान उसके अंग-प्रत्यंग में नग जगमगा रहे हैं । अतएव, दीपक बुझा देने पर मी घर में (ज्योतिपूर्ण शरीर और नगों के प्रकाश से ) खूब उजेला रहता है। है कपुरमनिमय रही मिलि तन-दुति मुकुतालि । छिन छिन खरो बिचच्छनी लखति छाइ तिनु आलि ।। १४८॥ अन्वय-तन-दुति मिलि मुकुतालि कपूरमनिमय ह रही छिन-छिन खरी बिचच्छनी आलि तिनु छाइ लवति । कपूरमनि = कर्पूरमणि = कहरवा, यह पीले रंग का होता है और तिन के का स्पर्श होते ही उमे चुम्बक की तरह पकड़ लेता है। दुति= चमक । मुकुतालि = मुकालि, मुक्ताओं के समूह । खरी=अत्यन्त । विचच्छनी चतुरा स्त्री। छाइ = छुलाकर । तिनु = तिनके । आलि =सखी। शरीर की (पीली ) ग्रुति से मिलकर मुन्ना की ( उजजी) माला (पीले) कपूरमणि-कहरुबा-की माला-मी हो रही है। अतएव, अत्यन्त सुचतुरा सम्बी क्षण-क्षण ( उस माला से ) निनका छुला-ठुलाकर देखती है (कि अगर कहरुवा की माला होगी, तो तिनके को पकड़ लेगी)। खरी लमति गोरें गरें धंसति पान की पीक । मनी गुलीबंद लाल की लाल लाल दुति लीक ।। १४९ ।। अन्वय-गोर गर घुपति पान को पीक खरी नमति लाल लान लीक दुति मनी लाल की गुतीबद । (सति = हलक के नीचे उतरती है। खरी-अधिक । लमति =शोभती