पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६३
सटीक : बेनीपुरी
 

जक=डर। घनु=कर्पूर।

(उसका पागल पन तो देखिये।) वह लक्ष्मी-सी सुकुमारी बाला श्रीकृष्ण को हृदय में धारण करने से तो नहीं डरती, किन्तु कपूर, चंदन (आदि के लेप) तथा वनमाला के बोझ से डरकर भाग जाती है (कि उनका बोझ कैसे सँभालूँगी!)

नोट--श्रीकृष्ण के विरह में व्याकुल नायिका अंगराग आदि नहीं लगाती है। इस दोहे में 'कमला' शब्द बहुत उपयुक्त है।कमला=जिसकी उत्पत्ति कमल से हो। इस शब्द से नायिका की अत्यंत सुकुमारता प्रकट होती है।

अरुन बरन तरुनी चरन अँगुरी अति सुकुमार।
चुवत सुरँगु रँगु सी मनौ चँपि बिछियनु कैं भार॥१५८॥

अन्वय--तरुनी चरन, अरुन बरन, अँगुरी अति सुकुमार। मनो बिछियनु कैं भार चँपि सुरँग रँगु सी चुवत।

अरुन=लाल। बरन=वर्ण, रंग। सुरंग=लाल। चँपि=दबकर। बिछियनु=अँगुलियों में पहनने के भूषण।

उस नवयुवती के चरण लाल रंग के हैं। उसकी अँगुलियाँ अत्यन्त सुकुमार हैं (ऐसा मालूम होता है) मानो बिछुओं के बोझ से दबकर (उसकी सुकुमार अँगुलियों सें) लाल रंग-सा चू रहा हो।

छाले परिबे कैं डरनि सकैं न पैर छुवाइ।
झिझकति हियैं गुलाब कैं झँवा झँवैयत पाइ॥१५९॥

अन्वय--छाले परिबे कै ढरनि पैर छुवाइ न सकै। गुलाब कैं झँवा पाइ झँवैयत हियैं झिझकति।

छाले=फोड़े। झँवाँ=झाँवाँ; जली हुई रुखड़ी ईट; वह वस्तु जिससे स्त्रियाँ अपने तलवों को साफ करती हैं। झँवैयत =झाँवाँ से साफ करना।

उसके पैर इतने सुकुमार है कि फोड़ा पड़ जाने के डर से दासी अपने हाथ उसके पैर से छुवा ही नहीं सकती। (यहाँ तक कि) गुलाब-फूल के झवें से पैर को झँवाते समय--साफ करते समय--भी हृदय में झिझक उठती है (कि कहीं गुलाब का कोमल पुष्प भी इसके पैर में न गड़ जाय)!