पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बिहारी सतसई
६८
 

रसघूमि=रस में मस्त होकर। पुलकि=रोमांचित होकर। पसीजति=पसीजती है, पसीने से तर होती है।

हँसकर, बुलाकर, (और) उधर (नायक की ओर) देखकर वह पूर्णयौवना स्त्री, रस में मस्त हो, पति द्वारा चूमे गये अपने पुत्र के मुख को चूमकर, रोमांचित तथा पसीने से तर होती है।

रहौ गुही बेनी लखे गुहिबे के त्यौनार।
लागे नीर चुचान जे नीठि सुखाये बार॥१७०॥

अन्वय--रहौ, बेनी, गुही गुहिबे के त्यौनार लखे। नीठि सुखाये बार जे नीर चुचान लागे।

रहौ=रह जाओ, ठहरो। त्यौनार=ढंग। नीर=पानी। नीठि=मुश्किल से। बार=बाल, केश।

ठहरो भी, (तुम) वेणी गूँथ चुके। (तुम्हारा) वेणी गूँथने का ढंग देख लिया। मुश्किल से सुखाये हुए इन बालों से (पुनः) पानी चुचुहाने लगा।

नोट--नायिका की चोटी गूँथते समय प्रेमाधिक्य के कारण नायक के हाथ पसीजने लगे, जिससे सूखे हुए बाल पुनः भींग गये।

स्वेद-सलिलु रोमांचु-कुसु गहि दुलही अरु नाथ।
हियौ दियौ सँग हाथ कैं हँथलेयैं हीं हाथ॥१७१॥

अन्वय--स्वेद सलिल, रोमांचु-कुसु, गहि दुलही अरु नाथ; हथलेयैं हीं हाथ कैं संग हियौ हाथ दियौ।

स्वेद=पसीना। रोमांचु-कुसु=खड़े हुए गेंगटे के कुश। नाथ=दुलहा। हियौ=हृदय। हँथलेयैं=पाणिग्रहण।

पसीना-रूपी पानी और रोमांच-रूपी कुश लेकर वर और दुलहिन (दोनों) ने पाणिग्रहण के समय में ही अपने हाथ के साथ ही अपना-अपना हृदय भी (एक दूसरे के) हाथ में दे दिया।

नोट--'प्रीतम' कवि ने कहा है--"धनी की जब सुरत में वह भाव हैं सरसत्रा, कुश रोम तन खड़े हो भूकम्प है दरसता।"