पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/९

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(३)

[चतुर्थ शतक १२०–१६१]
प्रेम-लक्षण ३०१–३०४
प्रेमाश्वासन ३०५–३०६
दूती ३०७
अभिसारिका ३०८–३१५
प्रिय-मिलनोत्कंठा ३१६–३२०
दूती-वचन ३२१–३२४
प्रथम मिलन ३२५–३३०
सुरतारम्भ ३३१–३३७
रति-क्रीड़ा ३३८–३३९
विपरीत रति ३४०–३४४
सुस्तान्त ३४५–३४६
त्रिबली ३४७
प्रेमक्रीड़ा ३४८–३५७
मद-पान ३५८–३६१
वन-विहार ३६२–३६५
जल-विहार ३६६–३६७
हिंडोला ३६८–३६९
चोरमिहीचनी का खेल ३७०
सुरत-जन्य शैथिल्य ३७१–३७३
सखी-वचन ३७४
रति-लक्षिता ३७५–३७८
गर्विता ३७९–३८१
खंडिता ३८२–४००
[पंचम शतक १६१–२००]
खंडिता ४०१–४२२
मानिनी ४२३–४५०
क्रिया-विदग्धा ४५१

मान और परिहास ४५२–४५४
प्रेम-गर्विता ४५५
पत्नि-अनुरागिनी ४५६–४६१
उत्कंठिता ४६२
दक्षिण नायक ४६३
धृष्ट नायक ४६४–४६६
ज्येष्ठा-कनिष्ठा ४६७–४७२
पड़ोसिन का प्रेम ४७३–४७५
विरह ४७६–५००
[षष्ठ शतक २००–२४१]
विरह ५०१–५३७
प्रेम-संदेश ५३८
प्रेम-पत्रिका ५३९–५४२
आगतपतिका ५४३–५५२
फाग-रंग ५५३–५५९
बसंत ५६०–५६३
ग्रीष्म ५६४–५६६
पावस ५६७–५७८
शरद ५७९
हेमंत ५८०–५८३
शिशिर ५८४–५८६
द्वितीया-चंद्र-दर्शन ५८७–५८८
चाँदनी ५८९
पवन ५९०–५९४
कुलवधू ५९५
ग्रामीण नायिका ५९६–५९८
नायिका-स्नान ५९९–६००