आँखों से (मुझे) देखा। (फिर वह) छबीली छल से एक क्षण के लिए अपनी छाया (मेरे शरीर से) छुलाकर चली गई।
नोट--छाया छुलाने से नायिका का यह तात्पर्य है कि मैं आप (प्रेमी) से मिलना चाहती हूँ।
कीनैं हूँ कोटिक जतन अब कहि काढ़ै कौनु।
भौ मन मोहन रूप मिलि पानी मैं कौ लौनु॥१७७॥
अन्वय--कोटिक जतन कीनैं हूँ कहि अब कौन काढ़ै। मोहन रूप मिलि मन पानी मैं कौ लौनु भौ।
कहि=कहौ। काढ़ै=निकाले, बाहर करे। लौनु=नमक।
करोड़ों यत्न करने पर भी, कहो, अब कौन (उसे) बाहर कर सकता है? श्रीकृष्ण के रूप से मिलकर (मेरा) मन पानी में का नमक हो गया--जिस प्रकार नमक पानी में घुलकर मिल जाता है, उसी प्रकार मेरा मन भी श्रीकृष्ण से घुल-मिल गया है।
नेह न नैननु कौं कछू उपजी बड़ी बलाइ।
नीर भरै नित प्रति रहैं तऊ न प्यास बुझाइ॥१७८॥
अन्वय--नेह न, नैननि को कछू बड़ी बलाइ उपजी। नित प्रति नीर भरै रहैं, तऊ प्यास न बुझाइ।
बलाय=बला, रोग। तऊ=तो भी। नित प्रति=नित्य, प्रतिदिन।
(यह) प्रेम नहीं है--कौन इसे प्रेम कहता है? (मेरी) आँखों में (निस्संदेह) कोई भारी रोग उत्पन्न हो गया है। (देखो न) सदा पानी से भरी रहती हैं--आँसुओं में डूबी रहती है, तो भी (इनकी) प्यास नहीं बुझती!
छला छबीले लाल कौ नवल नेह लहि नारि।
चूँवति चाहति लाइ उर पहिरति धरति उतारि॥१७९॥
अन्वय--छबीले लाल कौ छला नवल नेह लहि नारि चूँवति चाहति उर लाइ पहिरति उतारि धरति।
छला=छल्ला, अँगूठी। नवल=नया। लहि=पाकर। चाहति=देखती है। लाइ उर=हृदय से लगाकर। धरति=रखती है।