७१ । सटीक : बेनीपुरी आँखों से (मुझे ) देखा । (फिर वह ) छबीली छल से एक क्षण के लिए अपनी छाया ( मेरे शरीर से ) छुलाकर चली गई । नोट-छाया छुलाने से नायिका का यह तात्पर्य है कि मैं आप (प्रेमी ) से मिलना चाहती हूँ। की. हूँ कोटिक जतन अब कहि काढ़े कौनु । भौ मन मोहन रूप मिलि पानी में कौ लौनु ।। १७७ ।। अन्वय-कोटिक जतन कीन हूँ कहि अब कौन काढे । मोहन रूप मिलि मन पानी मैं को नौनु मौ। कहि = कहौ । का? =निकाले, बाहर करे | लौनु = नमक | करोड़ों यत्न करने पर मी, कहो, अब कौन ( उसे ) बाहर कर सकता है ? श्रीकृष्ण के रूप से मिलकर ( मेरा ) मन पानी में का नमक हो गया -जिस प्रकार नमक पानी में घुलकर मिल जाता है, उसी प्रकार मेरा मन मी श्रीकृष्ण से घुल-मिल गया है। नेह न नैननु कौं कछू उपजी बड़ो बलाइ । नीर भरै नित प्रति रहैं तऊ न प्यास बुझाइ ॥ १७८ ।। अन्वय-नेह न, नैननि को कछू बड़ी बलाइ उपजी। नित प्रति नीर मरे रहैं, तऊ प्यास न बुझाइ । बलाय = बला, रोग । तऊ=तो भी। नित प्रति =नित्य, प्रतिदिन । ( यह ) प्रेम नहीं है-कौन इसे प्रेम कहता है ? ( मरी) आँखों में (निस्संदेह) कोई मारी रोग उत्पन्न हो गया है। (देखो न ) सदा पानी से मरी रहती हैं-अाँसुओं में डूबो रहती है, तो मी (इनक) प्यास नहीं बुझती ! छला छबीले लाल को नवल नेह लहि नारि । वति चाहति लाइ उर पहिरति धरति उतारि ॥ १७९ ॥ अन्वय-छबीले लाल को छना नवल नेह लहि नारि चूँवति चाहनि उर नाइ पहिरति उतारि धरति । छला =छल्ला, अँगूठी । नवल =नया । लहि = पाकर । चाहति = देखती है । लाइ उर = हृदय से लगाकर । धरति = रखती है। - .