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बिहारी-सतसई
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मैं जानती थी कि आँखों के मिलने (लड़ने) से आँखों की ज्योति बढ़ेगी (दो के मिलने से दुगुनी ज्योति बढ़ेगी)। (किन्तु) कौन जानता था कि नजर के लिए नजर (बालू की) किरकिरी-सी होती है--उसे केवल पीड़ा ही पहुँचाती है!

जौ न जुगुति पिय-मिलन की धूरि मुकुति मुँह दीन।
जौ लहियैं सँग सजन तौ धरक नरक हूँ की न॥१८६॥

अन्वय--जो पिय-मिलन की जुगुति न, मुकुति मुँह धूरि दीन। जौ सजन सँग लहियैं तो नरक हूँ की धरक न।

जुगुति=उपाय। मुकुति=मुक्ति, मोक्ष। सजन=प्रीतम, अपना प्यारा।घरक=घड़क, भय।

यदि प्रीतम से मिलने का उपाय न हो--यदि इससे प्रीतम न मिल सके--(तो) मोक्ष के मुख पर भी धूल डालो--उसे तुच्छ समझो। (और) यदि अपने प्यारे का संग पाओ, तो नरक का भी डर नहीं--प्रीतम के साथ नरक भी सुखकर है।

नोट--एक कवि ने इसी भाव पर यों मजमून बाँधा है--

प्रीतम नहीं बजार में, वहै बजार उजार।
प्रीतम मिलै उजार में, वहै उजार बजार॥

मोहूँ सौं तजि मोहु दृग चले लागि इहिं गैल।
छिनकु छ्वाइ छबि गुर-डरी छले छबीलै छैल॥१८७॥

अन्वय--मोहूँ सों मोहु तजि दृग इहिं गैल लागि चले। छिनकु छबि गुर-डरी छ्वाइ छबीलै छैज छले।

मोहूँ सो=मुझसे भी। मोह=ममता। गैल=राह। छिनकु=एक क्षण। छ्वाइ= छुलाकर, स्पर्श कराकर। गुर-डरी=गुड़ की डली या गोली, भेली।

मुझसे भी ममता छोड़कर (मेरे) नेत्र उसी राह पर जाने लगे--उसी नायक के लिए व्याकुल रहते हैं। एक क्षण के लिए शोभा-रूपी गुड़ की गोली (इनके मुख से) छुलाकर (उस) छबीले छैल ने--सुन्दर रसिक ने-- (इन्हें) छल लिया।