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सटीक : बेनीपुरी
 

को जानै ह्वैहै कहा ब्रज उपजी अति आगि।
मत लागै नैननु लगैं चलै न मग लगि लागि॥१८८॥

अन्वय--को जाने, कहा ह्वैहै, ब्रज अति आगि उपजी। नैनु लगैं मन लागै मग लगि चलैं न।

को=कौन। कहा=क्या। अति आगि=विचित्र अग्नि, अर्थात् प्रेम की अग्नि। लगि लागि=निकट होकर।

कौन जानता है, क्या होगा? ब्रज में विचित्र आग पैदा हुई है, (वह) आँखों में लगकर हृदय में लग जाती है। अतएव तू (उस) रास्ते के निकट होकर भी न चल--उस रास्ते से दूर ही रह।

तजतु अठान न हठ पर्यौ सठमति आठौ जाम।
भयो बामु वा बाम कौं रहे कामु बेकाम॥१८९॥

अन्वय--सठमति आठौ जाम अठान न तजतु हठ पर्यौ। कामु बेकाम वा बाम कौं बामु भयौ रहैं।

अठान=अनुठान। सठमति=मूर्ख। जाम=पहर। बामु=विमुख। बाम=स्त्री। काम=कामदेव। बेकाम=व्यर्थ।

मूर्ख (कामदेव) आठों पहर अपना अनुष्ठान--सताने की आदत--नहीं छोड़ता--(अजीब) हठ पकड़ लिया है। वह कामदेव व्यर्थ ही उस अबला से (यों) विमुख बना रहता है--क्रुद्ध हुआ रहता है।

लई सौंह-सी सुनन की तजि मुरली धुनि आन।
किए रहनि नित रात-दिन कानन लाए कान॥१९०॥

अन्वय--मुरली धुनि तजि आन मुनन की सौंह-सी लई। नित रात-दिन कानन कान लाए किए रहति।

सौंह=शपथ, कसम। आन=दूसरा। रति=प्रीति, रुचि। किए रहति=(सुनने की) चाह लगाये रहती है। कानन=जंगल। लाए=लगाये।

मुरली की ध्वनि छोड़कर दूसरी चीज सुनने की (उसने) कसम-सी खा ली है। (वह) नित्य रात-दिन जंगल की ओर--वृन्दावन की ओर-- (वंशी-ध्वनि में) कान लगाये (प्रेमोस्कंठित) रहती है। वा बाम