पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१००

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१९ विहारविहार । । कीनो जनु टोनाँ । समुँह के आरसी लगाई हिय अनमोली । सुकवि कुंज दिसि देखि तिया जिय हरषि न बोली ॥ ७७ ।। न्हाइ पहिरि पट उठि कियौ बँदीसिस परनाम् ।। दृग चलाय घर क चली विदा किये घनस्याम्म ॥ ५० ॥ विदा किये घनस्यास तऊ अर्गे परत न पग। ललित कलिन्दीधार लखन-

  • सिस फिरि चितई मग ॥ गिरि गयो वेसर कहूँ कहति आई जमुनातट ।

। सुकवि घुसी पुनि नीर गुजरिया न्हाइ पहिरि पट ॥ ७८ ॥ चितवत जितवत हित हिये किये तिरीछे नैन । भीजे तन दोऊ कैंपें क्यों हूँ जप निवरें न॥५१॥ क्याँ हूँ जप निवरें न दोउन मन दोउ हरि लीन्हो । पुस ६ जनु दोऊ दुहुँन जादू सी कीन्हो । तनसुधि दोऊ विसरि गये हिय स हिय मिलवत ।

  • सुकवि पिया अरु पीय आज इकटक हे चितवत ।। ७६ ।।

मुहँ धोवति एड़ी घसति हँसति अनँगवति तीर ।।

  • धसति न इन्दीवरलयनि कालिन्दी के नीर ।। ६२ ।।

| कालिन्दी के नीर धसति नहिं देह अँगोछति । आँचर चोरि निचोरि प-

  • सरि कपोलन पोंछति ॥ चार वगारति झारति मलि मलि नैनन जीवति ।।
  • सुकवि स्यामरँगरेंगी तिया सुरि पुनि सुहँ धोवति ।। ८० ॥

पुरः ।, | कालिन्दी के नीर धसति क्यों नाहिं बावरी । घरी चार दिन चढ्या देख भई किती तावरी ९ ॥ कहा भयो क्यों ठठकि रही है कित के जोवति ।। में धोड़ चुकी हैं तऊ लुकवि पुनि क्यों मुँह धोवति ॥ २१ ॥ ॐ सादर : म