पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१०२

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बिहारविहार ।। ताही पै आवत ॥ अहै लाल के मुकुट मॉहि अटकी कत्र, ही हैं. 1 सुकवि लु- खहु समुहाति छनक हित यह सब ही तें ॥ ८५ ॥... खरी भीर हु भेदि कै कितं हूँ व्है इत आय। फिरै दीठ जर दीठ स सब की दीठ बचाय ।। ५७ ॥ । सव की दीठ वचाय फिरै नट की नटनी सी। हटकत मटकत जुरत फि- रत नहिं कोउ न दीसी ॥ लेत चित्र सी खाँचि सुकबि हनि मद्न तीर हूँ । करत इसारन वात सबै छिप खरी भीर हूँ ॥ ८६ ॥ .. :: : : :::: । सव की दीठ बचाय चलत जोगिन जिय जानौं । अञ्जन अजब लगाय. भई अन्तरहित मान ॥ पहिरे सेली पलक वरुनि लट चहुँ दिस विखरी । ॐ सुकवि चलत ज्यों कायव्यूह करि सखी निरख री ॥ ८७ ॥ .. कहत नटत रीझत खिझत मिलंत खिलत लग जात । भरे भौन मैं करत हैं नैननि हीं सब बात. ॥५८ ॥ नैनन हीं सव बात करत सङ्केत बतावत । हँसत हँसावत तिरछे तकि तकि पुनि सरमावत ॥ सुकवि हु नहिँ लखि सकत दोउन की बात पटत री । प्र- गट न बोलत कछु नैन हीं कहत नटत री ॥ ८८ ॥

  • दीठि वरत बॉधी अटनि चढि आवत न डरात।

इत उत ते चित दुहुँनि के नट लौं आवत जात ॥५९॥ नट लें आवत जात प्रेम को बोझ लियें सिर । लाज साँग पग बाँधि रहे ताह पै नहिं थिर ॥ मदनताल पै चाह राग गावत अतिमीठी । चतर भरि चलत सुकवि कीजे इत दीठी ॥ ८ ॥ . . . . . यह दो पनरचन्द्रिका में नहीं है। • इरत डौरी ॥ .. ::