पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१०३

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विहारीबिहार। . कंजनयनि मंजन किये बैठी ब्यौरति बार । ...... | कचअंगुरिनविच दीठि दै चितवति नंदकुमारः ॥ ६० ॥ : चितवति नंदकुमार तिया तन मन धन वारति । पुतरी सी व्है गई करें। एकटकी निहारति ॥ डारि लाज मैं गाज करति अपनो मनरंजन । सुकवि

  • चावरी भई गहे कच निजकरकञ्जन ॥ ६० ।।

पुनः ।। नन्दकुसार विलोकन के मिस तिय गीली । भौंहधनुष स वान कटा-

  • छन हनत हठीली ॥ कच की टाटी ओट करत ब्याधन मदर्भजन । सुकवि
  • चित्तमृग चेधि लियो गहि निज करकञ्जन ॥ ६१ ॥

| जुरे दहँनि के हग झमक रुके न झीने चीर ।। हलकी फौज हरौल ज्यौं परति गोल पर भीर ॥ ६१ ॥ परति गोल पर भीर मदन को पाई इसारो। बान कटारी बरछी को जनु साज सँवारो ॥ ललकि पैरा खेल रहे पूरे हैं गुन के । पीछे परत न कोऊ । सुकवि दृग जुरे दुहुँन के ॥ १२ ॥ : :: : पहुँचत हुटि रन सुभट लै रोकि सकै सब नाँहि ।। | लाखन हूँ की भीर में ऑखि वहाँ चलि जाँहिँ ॥ ६२ ॥ ... ऑखि वहीं चलि जाहिँ जहाँ वेधिवो निसानो। भौंह धनुष पै बान कटा- छन करि सन्धानो । लपकि झपकि कै हनत छनक महँ करत झुमित मन । । सुकवि कौंन बचि सकै ऑखि जव पहुँचति डटि रन ॥ ६३ ॥ | . .. ... पुनः । .. " ऑखि वहाँ चलि जाँहि भौंह भीषन धनु लीनँ । अञ्जन खड़ कटाच्छ । व्यत चानन को कीनें ॥ चक्र कनीनिक वरुनि सूल धारे न रहते हटि सुरू । कवि सम्हारहु विष वगरावत दृग पहुँचत डटि ॥ ९४ ॥ . -:... - --=-= - --