पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१०६

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= = = विहारीविहार ।।

  • नाम सुनत ही व्है गयो तन और मन और ।।

दुवै नहीं चित चढ़ि रह्यौ अवै चढ़ायें त्यौर ॥ ७० ॥ अवै चढ़ायें त्यौर नाहिँ दवि है यह आली । छिपी वात हू प्रगट करत तुअ नैन कुचाली ॥ चचन भयो सुर और फिरी दृग दृग फेरत ही । छिप- वत क्याँ मुख हहा सुकवि के नाम सुनत ही ॥ १०३ ॥ पूछे क्यों रूखी पति सगबग रही सनेह ।। मनमोहनछवि पर कटी कहै कॅट्यानी देह ॥ ७१ ॥ .. कहै कॅट्यानी देह तऊ दुरवत क्यों आली । हँसत सखिन लखि क्य छटकावत नैनन लाली । लगन लगी तो दोस कहा भई क्यों मन छूछे। सु कवि छमा करु क्य अनखावत हँसि हू पूछे ॥ १०४ ॥ प्रेम अडोल डुले नहीं मुख बोले अनखाये ।। चित उन की मूरत बसी चितवन माँहि लखाय ।।७२॥ चितवन माँहि लखाय नाहिं यह छिपत छिपाये । होत कहा है ग्वारि बहुरि वातन बौराये ॥ आँखिन डारति धूरि कहा करि चाँके वोला । सुकवि हिं प्रगट लखात भट्ट तुअ प्रेम अडोला ॥ १०५ ।। | ऊँचे चितै सराहियत गिरह कुबूतर लेत। दृग झलकित : मुलकित बदन तन पुलकित किहिँ हेत ७३॥ तन पुलकित किहिँ हेतु कपोलन परिगई पारी । रोम सेद संगवगे चाल : में हु भई धरी । सुकवि वोल लटपटे कम्प भयो अङ्ग समूचे । ग्रीवा नीची । भई करत ही नैनन ऊँचे ॥ १०६ ।। .. .। में दो अपरामें नहीं है। यानी = कटकिट मुलकित = पूर्वरूपविकारविगिट। = = =

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