पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१११

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= == == == न.न18 बिहारीबिहार। । सही रँगीले रतिजगे जगी पगी सुख चैन । | अलसहिँ साँहें किये कहें हँसौं नैन ॥ ८७ ॥ कहैं हँसहिँ नैन कोटि हू भाँति छिपावहु । ये नहिँ तुमरे होत हाथ मलि । मलि पछितावहु ॥ करे निचौहँ तऊ अहें ये दोऊ रसीले । आजु रमे तुअ । सङ्ग सुकवि हैं सही रँगीले ॥ १२४ ॥ औरै ओप * कनीनिकन गनी घनी सिरताज । | मनी धनी के. नेह की बनी छनी पटलाज ॥ ८८ ॥ .. वनी छनी पटलाज लसत है जुगल कपोलन । नैन नाँह समुहात झिपे । ही करत कलालन ॥ तेरी सौंह वताउ रही तू काके जोरै । औरै दृग भये सुकवि वचन औरै छाब औरै ॥ १२५ ॥ . . . । ==

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= यह बसन्त न + खरी गरम अरी न सीतल बात । . कहि क्यों प्रगटे देखियत पुलकि पसीजे गात ॥८९ ॥ पुलक पसीजे गात आज क्यौं लखियत प्यारी । सुनत न कोऊ और।

  • इकन्त हिँ भेद बतारी ॥ क्यों बेसुध है हँसति कियो जादू तो पै किहिँ। पीरे

परे कपोल सुकवि कैसे बसन्त इहिँ ॥ १२६ ॥ . मेरे बूझे बात तू कत बहरावति वाल। जग जानी विपरीत रति लाख बिंदुरी पियभाले॥ ९० ॥ 'भाल रुचिर सिन्दूर और बिंदुरी सुभ सोहति । लागत देखत हँसी माल ७ कनौनिका= आंख का तारा ॥ तात्पर्य औरै ओप कनौनिकन' तेरी आंख के तारों में और से ही छवि है, ‘गनी घनी सिरताज' तुझको मैं बहुतों को सिरताज समझती हैं, 'मनी धनौ के नेह

  • की बनी' प्रिय के प्रेम की बनी मणि, ‘छनौ पटलाज' लाज के कपड़े से छुन रही है ॥. अर्थात् लाज
  • करने से छिपती नहीं ॥ ' खरी = अत्यन्त । ।