बिहारीविहार । ।
- अधरन छाई॥ ॐचस्पकलीमनिचमक नखच्छत सी है कुच पर। सुकाबेकह्यो।
को कहा सरमि क्यों करत वदन तर * ॥ १३१ । । ।
- पट कै ढिग कत ढाँपियत सोभित सुभगं सुबेख ।
हद रछदछबि देत यह सदरदछद की रेख ॥ ९४ ॥ सदरछद की रेख गरद दाड़िमति कीनी । कौन मरद साँ मिली वेपद नारि नवीनी ॥ सरद भई क्यों जाति हरद से अङ्ग छुटी लट। साहूँ सुकवि विलोकु दीठि पुँचत क्याँ चटपट ॥ १३२ ॥ . कहि पठई मनभाँवती, पियआवन की बात ।। फूली आँगन मैं फिरे, आँग न आँग समात ॥ ९५ ॥ आँग न आँग समात डहडहीं डोलत प्यारी । छन छन रचत सिँगार जात छन द्वार निहारी॥ होत बिलम्ब बिचारि अधिक अकुलात हीय महि । हहरि हहरि सी उठत सुकवि तिय पीय पीय कहि ॥ १३३ ॥ | + फिर फिर बिलखी है लखति फिर फिर लेते उसास। साईंसिरकचसेत ल बीत्यो चुनत कपास ॥ ९६ ॥ चुनत कपास हिँ साँचि साँचि बूंदन आँसू की । बार बार ही थकी थकी | करि अँगुरिन फेंकी ।। हरि मिलिवो हिय बस्यो उड्यो जिय नैन नाहिँ थिर।। बैठत चपकी साधि सुकवि मग चितवत फिर फिर ॥ १३४ ॥ ३ चम्पाकली = एक प्रकार का भूषण 1. " तर= नीचे अथवा स्वेद से भीगा ॥ ॐ हद = इद्द ।
- रट छद छवि देत ओठ को शोभा देती है। सदरदकट को देख = सद्यः दस्तक्षतकी रेखा ॥
- + यह शृङ्गारसप्तशती में नहीं है ।