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| विहारविहार ।। सन सक्यो वीत्यो* बनौ ऊखौ लई उखरि । | हरी हरी अरहर अज धरु धरहर हिय नारि ॥९॥ धरु धरहर हिय नारि - कहरि क्यों करत वावरी । सरस सरस सुहात सरस हिय करंत : चाव री॥ देखि ६ पोसतनखतन हू तन क्याँ धुकधुक्यो । कहा भयो जो सुकवि एक कोने सन सूक्यो ॥ १३५ ॥ s::.: 5. 1 5
2 -- 55 का सतर भौंह रूखे वचन कति कठिन मन नीठि। कहा करों व्है जाति हरि हेरि हसौहाँ दीठि ॥ ९८ ॥ हेरि हसौहाँ दीठि रहत मेरे बस नाहीं । अली मान यह परो भार - झारन माहीं । करि जादू सो स्याम सबै सुधि बुद्धि विनासत। सुकवि पुलकि तन उठत मार को मुकट प्रकालत ॥ १३६ ॥ - -
--- -- दीटि दुरावत अधिक अधिक हैं तो अपनी घाँ। तऊ घिंची सी जात
- चलत कछु नहिँ मेरी व्हाँ ॥ करत तरेरी जिती नेह तेत परकासत । कहा
करू में हहा सुकवि लखि मो-दृग हाँसत ॥ १३७ ।। --
| तु है कहति हाँ आप हू समझति सौक सयान ।। लखि मोहन जौ मन रहै तौ मन राखौं मान ।। ९९ ॥ मान ने पावत रहन अली मोहन की छवि लखि । करी बंक हू भाँह
- सरज ही होइ जात सखि ॥ तो है पै कलकण्ठ भाँति कुजत कुहू कुहू । सुकचि ।
रूनिये कहत अरी भारी अहै तुह् ॥ १३८ ।।
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- घन्वा दन र कपार । : हर व्याकुलता ।
- बाई इसा । पाहु का वः । । यह हा अनवरचन्द्रिका में नहीं हैं हैं
अपन ६ ८. अपन र ।