पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/११८

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विहारीविहार ।। छनक उघाति छन छुवति राखति छनक छिपाइ ।....। सव दिन पियखंडित अधर दर्पन देखत जाय ॥ ११०॥ दर्पन देखत जाय सवै दिन वैठि अकेले । छन छन पछिति ठठक जाति पुनि अँगुरी मेले ॥ ऍटि उमेठति छनक मोहि निज तन मन वारति । सुकवि हिँ लखि लखि ढाँपति छन छन छनक उघारति ॥ १५२ ।। छला छवीले छैल को नवल नेह लहि नारि । । चमति चाहति लाय उर पहरति धरति उतारि॥ १११॥ | पहरति धरति उतारि निकारति पुनि पुनि पहरति । मुरति छनक ल तऊ दीठि वाही पैं ठहरति । छनक उघारति छन सिरधाति सुमिरि रसीले । सुकवि कियो कछु बसीकरन दै छला छवीले ॥ १५३ ॥ . . दुसह सौति सालै जु हिय गनति न नाहविवाह ।। धरे रूप गुन को गरब फिरै अछेह उछाह ॥ ११२ ।। | फिरै अछेह उछाह रूप गुन की गरवाली।जानत मो सामुहँ रति हु टरि । जात लजीली ।। नये व्याह को मनहूँ तमासा देखत डहडह । सुकवि पिया- वसकरने सति नहिँ थाक + दुःसह ॥ १५४ ॥ सुघरसतिवस पिय सुनत दुलहिनि दुगुन हुलास । | लखी सखीतन दीठि करि सगरव सलज सहास ॥११३॥ सगरव सलज सहास भाँह मटकावति प्यारी । करें तिरीछे नैन सहेलिन ओर निहारी । सुघराई के गरव भरी जानति सव ईंगरस । मुसकिराति तिय । सुकवि सुने हरि सुघरसौतिवस ।। १५५ ॥ ६ र ६ } • मोहित ही के हैं 45 विमर्ग का है ।