बिहारीविहार ।। हँसि ओठनबिच कर उँचे किये निचौहँ नैन । खरे अरे प्रिय के प्रिया लगी विरी मुख दैन ॥ ११४ ॥ लगी बिरी मुख दैन, कण्टाकित कर हैं प्यारी । लाजनबोझनझुकी गहति सिर सरकत सारी॥ पुलकन सौं लगबगी सुतिहरि हिये रहीं बसि । सुकवि तिरीदें लखति फेरि मुख चितवति हँस हँसि ॥ १५६ ॥ | पुनः । । लगी विरी सुख दैन धन्य धनि धनि यह नारी। हरि १ रीझी सबै आपनी लरति विसारी ॥ जोगीजन जिंहिँ ध्यावत बैठे कुन्दरकेाठन । सुकवि गुजरी देति बिरी तिहिँ हँस हँसि ओठन ॥ १५७ ॥ दैनलगी मुख पुलकि पसीजे कर तै बीरी। पीरी छटा कपोल अधीरी भई अहीरी ॥ गिरिगई सो बीच हीं रही बनमाल माहिँ फैसि । अँगुरी । ओठनि लगी सुकवि तकि दोऊ गये हँसि १५८६ ॥ बिथुरयो जावुक सौतिपग निरखि हँसी गहि गाँस । | सलज हँसौंहीं लखि लियो आधी हँसी उसाँस ॥११५॥ आधी हँसी उसाँस लियो मुख मोरि गूजरीं । अरुनकमल सी छटा बंदन
- की भई ऊजरी। सूखन लाग्यो अधर भयो अँग जैसें पावकं । विथुरो अंजन
नैन सुकवि लखि विथुरो जावक ॥ १५९ ॥ छला परोसिनहाथ तें छल कर लियो पिछानि ।। पिय हिँ दिखायो लखि बिलखि रिससूचक मुसकानि ॥११६॥ । रिससूचकमुसकानभरी ताने सी मारति । तकति तिरछी तकनि छिपी
- जनु वात उघारति ॥ सुकवि हठीली नारि कान्ह के हिय की तोसिन ।
- कहात हहा किमि लह्यो लला यह छला परोसिन ॥ १६० ॥ :. :
० बिघुरो = आँसू से वह चला ॥ * तोसिन =तोषिणी = तुष्ट करने वाली । .... : 5.55 == =