पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१२

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जाके खानदान मैं भये हैं ज्ञानवान जन दुनी मैं गुनी को एक सोई पहिचानै गो

  • ना को होनहार है है भलो सव भंति ही ते सोई बुध पण्डित की प्रीति उर नै गो॥

भाग मैं वद्यो है जाके कछु है अनन्दकन्द कवितावितान के सु सोई रस सानै गो । मुन्दर सुजम जाके भाल मैं लिख्या ३ सोई सुकवि सुजानन को मान करि मानै गो॥

  • रोज रोज ओज कौन भोज के वरखानते है कौन इन्द्रजीत हू के खोल माहिँ परते।।

अाज सिवराज महाराज कों बनते को कौन छत्रसाल के विसाल नाम धरते ॥ लगतो कहा मैं पतो राजा श्रीहरष हू को कौन सिवसिंहू के सुजस उचरते ।। । विक्रम के विक्रस के क्रम कौन जानती जो सुकवि सुजान इनै अमर न करते ॥ १३॥ ॐ सोरठा । धन्य धन्य अवधेस, सुकवि सुजानन हादरत । तुअ जस देस विदेस, रहहु अचल अचलेस जिमि ॥ १४ ॥ धनि ते सुकवि सुजान, सरस सरल कविता रचत । पावत तुमसो मान, अचला पुनि कीरति लहत ॥ १५ ॥ धनि सो रसिकस साज, सरस कवित जिनको रुचत ।। धनि सो नर सिरताज, जिन हिय है हरि चरन रति ॥ १६ ॥ • इन्ट्रीत परा के राजा नै केशव कवि को ३१ ग्राम दिये । शिवमिंद मिथिलानरेश ने पण्डित

  • विदरपति को विभप ग्राम दिया । शिवाजी ने भूप यो १२ हायो २५००• ; श्री ग्राम दिये ! छत्रमान
  • ने छान कइि को जीपिका दी । विक्रम के नवरत्न दें। भोज एक झोक बनानेवाले की एक लक्ष मुद्रा