पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१२२

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विहारीविहार । ट्रनिहाई सब टोल में रही जु सौति हाय । ... सु तौ ऐचि पिथ आप त्य करी अदोखिल आय ॥१२४॥ | करी अदोखिल आय कलङ्कनसङ्ग हटाई । त्याँ जनु उन के बदन माँहि सेतता रमाई॥ चतुर चवाइन को चवाव हू दियो मिटाई। सुकवि स्याम नैं सती करी जो ही दुनिहाई ॥ १६८ ॥ । । । रह्यो ऍचि अन्त न लह्यो अवधि दुसासन बीर । | आली वाढ़त बिरह ज्याँ पञ्चाली को चीर ॥ १२५ ॥ पंचाली को चीर मनहुँ निजतन विस्तारत । विविध रंग दिखराय हाय जनु धीरज गारत ॥ पट वाढे ते द्रुपदसुता तो अधिक सुख लह्यो । विरह

  • बड़े पुनि सुकवि हहा सो हीय तचि रह्यो ॥ १६६ ॥
  • हिय औरै सी व्है गई टरे अवधि के नाम ।

दूजे करि डारी खरी बौरी वीरे आम ॥ १२६ ॥ चौरी चौरे आस और दुखिया करि डारी । कुहू कुहू के कोकिल हू जनु । हीयविदारी ॥ फुले किंसुक गुनि दवागि भागी सी दौरे । सुकवि तिया । विरहिनी भई तन अरु हिय औरै ॥ १७० ॥ - छत नेह कागद हिये भई लखाई न टाँक । | विरह तचे उघरयो से अब सँहुड़ को सो ऑक ।। १२७ । । । सहुड़ को सो अंकि तपायें प्रगट लखायो । नैन नीर से धुप्यो और । 442t. sasia-*-*-*- -*-=4444 -*-*-*

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  • यह टोरा बारमगतिका में नहीं है । * में हुड़ के दूध में कागज़ पर कुछ निरव ६

काय तो ट च नहीं जानपड़ता पर जब उने तयादें तो अझर प्रगट होते हैं । यह पानी से भेने

  • *१३ अक्षर गरे ।

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