= - = - -= = =- =- - = - = - विहारविहार । । नद नदी बहाये ॥ चमकन लागी विज्जु चहूँ दिस भो अँध्यार पुनि । सावन कीनो सुकवि चलन पिय पूस मास सुनि ॥ १७५ ॥ • ललनचलन सुनि पलन में असुआ झलके आय ।। | भई लखाइ न साखिल हूँ झूठें हाँ जमुहाय ॥ १३२ ॥ झूठें हाँ जमुहाय लगी मलिचे दोउ नैनन । सानि निदाँहँ भाव दये निज गदगद चेनन । केसरवटन उवाट पियरई दई ढाप पुनि । सुकवि इकन्त । हिं बेठि रही तिय ललनचलन सुनि ॥ १७६ ॥ . चलत चलत लीं ले चले सव सुख सङ्ग लगाय।। ग्रीषमबासर सिसिनिस पिय मोपास बसाय ॥ १३३ ।।
- पिय मापीस वसाय सिसिरनिसि वासरग्रीपम । चले आयु खि मादृग
२ में चरपारितु भीपम । दरकत छाती सुकवि सुमिरि हू सरद कीच ज्याँ । भली
- निचाही प्रीति सँवरे चलते चलत ल ॥ १७७ ॥
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विलखी डभकहिँ चखन तिय लखि गमन बराय ।। पिय गहवर आयो गरो राखी अरें लगाय ।। १३४ ॥ | राखी गरें लगाय विसरि के बात जान की । तन मन नैनन बैनन छाई प्रिया प्रान की । जैवे के अपराध मनहूँ दृग होत न सहें । सुकवि हिये जनु
- लिखी तिया विलखी डभौंहें ॥ १७८ ।।
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4**** 4 15-4 बामा भामा कामिनी कहि बोलो प्रानेस ।। प्यारी कहत लजात नहिं पावस चलत विदेस ॥ १३५॥ पावस चलत विदेस कहत सुख प्यारी प्यारी । और जरे पे नोन डारि .44 - ' '