पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१२९

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- -IInstavalik | 44444===== | बिहारीविहार ।. ।। बाम बाहु फरकत मिलें जो हरि जीवनमूरि।। तौ त ही साँ भेटि हैं। शखि दाहिनौ दूरि ।। १४२ ॥ राखि दाहिनो दूरि तो हि स स्याम भेटिहौं । भूषन तो हि पहिराइ । दच्छ सौ प्रेम मेटिह ॥ य कहि चूमति बाम भुजा सुमिरति घनस्यामा ।। हरि हरि भाषति सुकबि बावरी है गई बामा ॥ १८८ ।। मलिन देह वे ई बसन मलिन बिरह के रूप । । पियआगम औरै बढी आननओप अनूप ।। १४३ ॥ आननओप अनूप और ही छन मैं छाई । असुवनमलिन कपोलन आई। पुलकलुनाई ॥ उजरे से जे हुते सु सोभित भये गेह वे । सुकवि दीहदुति । | सौं दशकाने मलिन देह वे ॥ १८६ ॥ कियौ सयानी सखिन स नहि सयान यह भूल । .. दुरै कुराई फूल ल क्याँ पियआगमफूल ॥ १४४ ॥ क्यों पियआगम फूल फूल ल दुरै दुराई । सपथ किये हू मृगमदगन्धन । छिपै छिपाई ॥ विरहबिथा सहि सुकबि आज जो पुनि हरसानी। ताहि छपावत कही सयानप कियो सयानी ॥ १६.० ॥ रहे + बरौठे में मिलते पिय प्रानन के ईसु । आवत आवत की भई बिधि की घरी घरी सु ॥ १४ ॥ विधि की घरी घरी सु व्है गई किते बरस सी । सरस हरस हू. बरसत दृग भई दुरसतरस सी ॥ सिथिलित अँग व्है चले हते जु, उछाह हरौठे। सुकवि देह रह्यो गेह प्रानं पुनिः रहे बरौठे ॥ १६१ ॥ . . : | ३ उजरे = उजड़ । सयानप = स्यानपन । ॐ वरौठा = वहिःकोष्ठ ४ वरामदा। ICCEERICE -BE.25.27E.C,NE E