पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१३३

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= == = = विहारीविहार ।

  • उठि ठकठक एतौ कहा पावस के अभिसार ।

जान परैगी देखि ज्यौं दामिनि घनअँधियार ॥ १५६ ॥ दामिनि घनअँधियार सरिस सुन्दर छवि पैहै । मोतिनभूषन पहिरि चमक जुगनू सी व्हैहै। क्याँ बहु संसय परी कति है झूठे बकवक । सुकवि अँधरी । रौन नाँहि कछु हू उठि ठकठक ॥ २०५ ॥ गोप अथाइन तें उठे गोरज छाई गैल। चलि बलि अलि अभिसार की भली सँझोखें सैल॥१५७।। . | भली सँझोखें सैल सिंदूरी छाये बादर । फूली संझा धारि कुसुम्भी सारी चादर । नृपुर सुनिहै कौन घोर गाइन की घण्टिन । सुकबि असंसय चलु सँकेत गये गोप अथाइन ॥ २०६ ॥ छप्यो छपाकर छित छयो तम सिसिहर न सँभारि ।। | हँसति हँसति चालि ससिमुखी मुख हँ आँचर टारि ॥१५८॥ ' मुख तें आँचर टारि साँवरी को तोहि लखिहै । सघनतमालनछाँह बात तेरी सव रखिहै । हिय जनि होहि उदास साज सब है रसाकर । सुकाब छवीले छैल निकट चलि छप्यो छपाकरं ॥ २०७॥ =

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fe ... .... .......... ... सघन कुंज घन घनतिमिर अधिक अधेरी राति । तऊ न दुरिहै स्याम यह दीपसिखा सी जाति ॥ १५९ ॥ दीपसिखा सी जाति स्याम कैसें छिप जैहै । ढर्दै सँवरी सारि हुर्ते अँग- हैं दुति दमकैहै ॥ या साँ आपु हि चलो छैल मोविनती करि मन । सुकबि तिहारी गैल निहारति हिय कै. रसघन ॥ २०८ ॥.. ।

  • अनवरचन्द्रिका में यह दोहा नहीं है ॥ ( ठकठक = अन्देशा = बखेड़ा ) । लल्लूलाल ने *
  • ‘अभिसारिके' पाठ रखा है। इB ससिहर न = डर सत ।।