पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१३६

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== = = = = = - | विहारविहार ।। कत बेकाज चलाइयंत चतुराई की.चाल।": | कहे देत गुन रावरे सवगुन निर्गुन माल* ॥ १६८॥ सव गुन निर्गुन माल कहत वाकी नहिँ राखत । अलसअरुन दृग दोऊ गवाही तोपें भापत ॥ कुचकेसर दई मुहर पीक हू कीने दसखत । सुकवि अजहुँ है निलज झूठ इजहार देत कत ॥ २१७ ॥ | तुरत सुरत कैसें दुरत मुरत नैन जुरि नीठ। | डौंड़ी दै गुन रावरे कहै कनौड़ी दीठि ॥ १६९ ॥ कहै कनौड़ी दीठि कळू नहिँ रखत छिपाये । देत रसन दरसाये अरसाये सरसाये ॥ सुकवि खरे करि कहा ग्रीव को अति निहुरन कै । प्रगट भई यह आये हो हरि तुरत सुरत कै ॥ २१८ ॥ पावक सो नैननि लग्यो जावक लाग्यो भाल । | मुकुर होहुगे नैक मैं मुकुर विलोको लाल ।। १७० ॥ मुकुर विलोको लाल रहे क्यों धुकुर पुकुर कै । सरमाने हो कहीं रहे क्याँ अङ्ग सुकुर कै । सुकवि लगै किन तुम कौं अतिसै मनभावक सो। जावक

  • लाग्यो भाल लगे मोक पाक सो ॥ २१६ ॥ . ..।

प्रानप्रिया हिय में वसै नखरेखाससि भाल। भलो दिखायो आनि यह हरि हररूप रसाल ॥ १७१ ॥

  • हरि हररूप रसाल आजु अति सरस दिखायो । अंजनरंजनच्यालवाल-
  • * मर गुनयाली निर्गन मान्न तुम्हारे गुन ( दोष ) को कहे देती हैं । हरिप्रकाश में” * कहे देत गुनि

२ रा " पाठ हैं। संत प्राकार हरिप्रसाद ने तो रही पाठ रहा है जैसे “कत देकाज वना

  • धत चतुराई की बात है। ऊ देत यह राय सगुन विनुगुन मान्नु " । उनकी प्रार्या यों है “प्रयवसि

३ किमर्थमधुना चायं ते था गुणं निखितम् । कवयति दन्निता मान्ना गुग्गलिता वमा कलिता” }

  • * * = *गी । कनाड़ी = कान की प्रोर झेपो (कानमुड़ी)।
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