पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१३८

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विहारविहार । गडे वडे छविछाक छकि छिगुनीछोर छटै न । | रहे सरेंग रँग राँग उही नहँदी महँदी नैन । १७६ ॥ .. नहँदी महँदी नैनन लगि अति करी ललाई। पुनि अपने अनुराग हि साँ दीनो हिय छाई. ॥ सौतिन हूँ के दृगन माँहिँ असनई गई फबि । कौन रसिक के मन न सुकवि इहिं गड़े बड़े छवि ॥ २२५ ॥ . . | वेई गड़ि गाडै परी उपट्यो हार हियै न ।। आन्यो मोरि मतंग, मनु मारि गुरेरन मैन ॥ १७७ ॥ | मारि गुरेरनि मैन किनँ विधि मोर मुरायो । आँकुस दीनो गहकि नाहिँ नखछत दरसायो । सुकवि कहो कोउ बाँह पड़ी वेनी की पाऊँ । साँच हु कोड़ा

  • हने रही वेई गड़ गाउँ ॥ २२६ ॥.. ....।

| ह्याँ न चलै बलि रावरी चतुराई की चाल ।। सनख हिये छन छन नटत अनख बढ़ावत लाल ॥१७८॥ अनख चढ़ावत लाल सनख सुन्दर तुमरो हिय । अरस देह पुनि कहत सरस साँचो तुसरो जिय ॥ रूखे रूखे नैन चीकनो चित भापत भलि । सुकवि चाल चतुराईवारी ह्याँ न चलै बलि ॥ २२७ ।। -=-=- = - =- - =

- - - -- . = . ,L-1. कत कहियत दुख दैन क रचि रचि. वचन अलीक। सबै कहाउ रहें लखें लालमहाउरलीक ॥ १७९ ॥ लालमहाउरलीक को न करो यह चीन्हो । प्यारी नै तुमरो सगरो करतब लिखीन्हो ॥ कोऊ स पद्वविहु जो अपने नहिँ पढ़ियत । सुकवि अरथ विनु वात वनावट की कत कहियत ॥ २२ ॥ ६ अन्वयन रमिक के मन इहि छवि न बड़े गड़े बड़े गड़े = अतिगड़ ।

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