पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१३९

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ॐ । विहारीविहार । ' तरुनकोकनदरन बर भये अरुन निसि जागि।..." वा ही के अनुराग हग रहे मनो अनुरागि ॥ १८० ॥. रहे मनो अनुरागि दोऊ दृग तेहिँ अनुरागैं । पीकछापमिस पुनि कपोल अनुरागै पारौं । अरुनोदय जग अरुन भयें छिप चले वेदरद । सुकवि अरुन मैं अरुन मिले तन तरुन कोकनद ॥ २२ ॥ ' : । न कर न डर सब जग कहत कत बे काज लजात ।. . सौहें कीजै नैन जो साँची सॉहैं खात ॥ १८१ ॥ साँची सहिँ खात नैन तो कर्ज साहूँ। पिय प्यारे बलि जॉउँ करत क्यों बदन लहें ॥ जो. झूठी ही बात देह क्यों थरथरात तव । सुकबि निडर व्है रहहु कहत हैं न कर न डर सब ॥ २३०॥ लालन लहि पाये दुरै चोरी सौंह करे न । सीस चढ़े *पनिहा प्रगट कहँ पुकारे नैन ॥ १८२ ॥ कहैं पुकारे नैन वात हिय की सेव खोटी। दोऊ कपल दिखाइ रहे जनु

  • पीकचमोटी ॥ अधर हु थरथर करत देत हियरो दरकायें । चोरी कैसे दुरै

सुकवि लालन लहि पाये ॥ २३१ ॥. . , रह्यौ चकित चहुँघाँ चितै चित मेरो मत भूलि। । | सूरउदै आये रही दृगंन साँझ सी फूल ॥ १८३ ॥ . दृगन साँझ सी फूलि रही है स्याम तुमारे । अधिकअँधेरेउमॅगनं जनु । भये अधर अँध्यारे । सुकाव कपोलन चमक़ि रहे तारे हू' कहुँ कहूँ। लखि

  • मुखसास मो दृग चकोर है रह्यौ चकित चहुँ ॥ २३२ ॥ ............।
  • जासूस = चुगलखोर = निन्दकं = सूचक : .. . . . . . . .: ::.:... ।