पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१४

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श्रीमन्महाराजाधिराज अयोध्यानरेश्वरवारवर आनरेवल सर प्रतापनारायणसिंह बहादुर के. सी. आई. ई. । अवध के इतिहास जानने वालों में ऐसा कौन होगा जो अवधधेश बौदर्शनसिंह के राजा वहादुर

  • को न जानता हो । .इनको शाहो देवर से राजा वहादुर को पदबी मिलो धौ । अयोध्या को शोभा

इनके कारण अत्यन्त हो वो यो प्रसिद्द सृर्यकुण्ड और महाप्रसाद शाहगन्न इनौ का बनाया तथा वमाया है । अयोध्या में इनके कामदारों के बनाये भी बहुत मन्दिर हैं । ये बड़े दौर तथा योद्धा थे । राजाशिवदीनसिंह वनदेवसिंह प्रभृति अनेक राजाओं से युद्ध कर इन ने विजय लाभ किया था। अयोध्या में शिव स्थापन किया यह दर्शनैश्वर का विशाल मन्दिर अद्यावधि वर्तमान महाराजा साहब के उद्यान

  • के मध्य में विराजमान है और उच्च सौवर्ण शिखरों के अग्रों से मेघमण्डली में महाराज दर्शनसिंह का

प्रताप लिख रहा है, ऐमा विदित होता है कि इस की रगड़ की नील पड़ने से चन्द्रमा सकनङ्ग हो।

  • गया है। इनके बनाये और भी अनेक स्थान हैं । इनके भाई का नाम व रत्नावरसिंह था और वे सदा ।

नवनऊ के पागाह ( शप्रादत अली खां ) के साथ रहते थे और उनके प्रति कृपापात्र ६ ॥ दशनसिंह राजा वहादुर को सन् १८:९ में सुलतानपुर और फैजाबाद के नाजिम का पद मिन्ना ॥

  • और सल्तनत बहादुर को पदवी मिली संवत् १८.०१ में सलतनत बहादुर महाराजा दर्शनसिंह राजा

वाटुर इस संसार का त्याग कर गयें और संवत् १९०२ में उनके सब से छोटे पुत्र महाराजा मानसिंह

  • गद्दी पर विराज ॥ ये महाराज मानसिंह भी बड़े वीर और योद्धा हो गये हैं। ये अमेठी, टिकारी,

२ दियरा, भदरगढ़, भिनगा आदि से लड़े थे और विजय कर पादशाह के अत्यन्त कृपाभाजन हुए ॥ यहां । म तक कि जगन्नाथसिंह यौर रजवन्द सिंह पुन दो वोर राजद्रोहियों को कोई भी वश में न ला सका।

  • वा सो ऽनने रजाबन्द को मारी श्रीर जगन्नाथ को पकड़ा। इसपर अतिप्रसन्न हो पादशाह ने अर्गक

राजा और तअनुदारों के देवुत ही इने अपने साथ गाड़ी पर बैठाया इनके अनेक वीरता के काय्य

  • पर धमत्र हो कर पादशाह ने पून्हें क्रमशः राजा वहादुर, सलतनत बहादुर कायमजङ्ग, सरकोव मर-
  • कशान् राजेराजगान् इत्यादि पटविया । मुंवत् १८१२ में राजा बत्रावरसिंह बहादुर के परलोक

होने पर उनके राज्य का प्राधिपत्य भी नही महाराजा मानसिंह वहादुर को मिला। मुंवत् १८१४ ।

  • जिम मुमय अचानक भारत वर्ष में धार राज्य विद्रोह फैल गया था उस समय हुनने ५ • से अधिक

अंगरेज की रक्षा को बी एम पर अंगरेजी गवर्म गट अत्यन्त हो प्रसन्न हुई यहां तक कि स्वयं महा १३ का पद दिया र संवत् १८.२ में तरतु नऊ के भरे दरबार में उम ममग्र ॐ गवरनर जेनरल } | * इनके खाना र ४ वरषु नारमिह मैं जिनके साकार यश: पटन्नम्वरूप, बिगान्तशुभ्र पानयुत गिः ।

  • ना२यदाट धयोध्या में गद्दारपर,शोभायमान हैं। अर इनके पिता का नाम यो पुरन्टर था । एन ।

पूर्व में भदास्तु पाठक वड़ यशस्वी प्रै मताप हो गये हैं । यह विहे नाकइयो देश हैं । *