पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१४०

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५७ विहारीविहार । आपु-दियो मन फेरि लै पल टै दीनी पीठि। कौन चाल यह रावरी लाल लुकावत दीठि ॥ १८४॥ . लाल लुकावत दृठि कहा किंहिँ वात लजाने । लेन देन कृरि पूरन पुनि कैसे सकुचाने में सोहत तुम क सबै सुकवि गोपाल धन्य धन । देइ लियो ३ अरु फेर आन क आप दियो मन ॥ २३३ ॥


- ' मोहि दियो मेरो भय रहत जु मिलि जिय-साथ । ' । सो मन बाँधि न दीजिये पिय सौतिन के हाथ ॥ १८५॥ | पिय सौतिन के हाथ हाय साँपो जनि वाही । मेरो जान कसाइन ल । ३ हनिहूँ ये ताही ॥ अथवा मेरो होइ गयो चाल जो मम द्रोही । सुकवि और 4 को हुँ हैहै नहिँ निहुँचे है मोही ॥ २३४ ॥ । अति सन सुख लाई | ललन सलौने अरु रहे अति सनेह सौं पागि ।। तनक कचाई देति दुख सूरन ल मुख लागि ॥ १८६॥ सूरन ल मुख लागि हाय काटत ग्रीवा जनु । कळू नाहिँ कहि सकत पार जानत मन ही मनु । तपे न विरह सँताप कठिन है या सौं गौने । सुकवि भये रसहित ताहि स ललन सलोने ॥ २३५ ।। कहि सकते आज कळू औरै भये ठए नये ठिक छैन । चित के हित के चुगल ये नित के होहिं न नैन ॥१८७|| ३ नित के होहिं न नैन आजु लाख परत लजीले । कछुक सलौने अलस-

  • भरे कछु अहें रसीले । कछु कछु अंजनपूँछे ये नखरे के त्यौरे । सुकवि

भरुनताभरे लखे आज कळू औरै ।। २३६ ॥

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