पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१४२

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= = = = = = = विहारविहार। ,

  • कत लपटैयत मोगर्दै सो न जु ही निस नैन ।

जिहिँ चंपकवरनी किये गुल्लाला-सँग नैन । १९२ ॥ गुल्लालासँग नैनकमल दावदी वदनछवि । हारसँगार हु अजव विगुन कहि सके कौन कवि ॥ पार जात रस उदधि अनत मोहि क्यों चहरैयत । छल अति सीखे सुकवि तजहु गर कत लपटैयत ॥ २४१ ॥ मैं तपाय त्रय ताप स राख्यौ हियौ हमाम् ।। | मति कब हूँ आदें इहाँ पुलकपसीजे स्याम ॥ १९३ ॥ पुलकपसीजे स्याम इतै जो कव हैं आवें । गरम गरम असुन फुहारन धार नहावें ॥ पुनि तैसिये वतास साँस की लागै उन पैं। सुकवि याहि साँ ॐ अति तपाय हिय राख्यो है मैं ॥ २४२ ॥ f जो तिय तुम मनभावती राखी हिये वसाय ।। | मोहि खिझावति देगनि है वह ई उझकति आय ।। १९४॥ । | वह ई उझकात आय दृगन है हीय विदारात । वह ई तुअ वचनन सँग जनु चिपवृन्द वगारति ॥ वह अमोलकपोलन झलकि मसूसि रही जिये ।। सुकवि परी मोगैल ::अँगेरी प्यारे जो तिय ॥ २४३ ॥ सदन सदन के फिरन की + सद् न छुटै हरि राय । रुचै तिते विहरत फिरों कत विहरत उर आय ॥ १९५॥ आय आय के धाय हाय क्यों हीय विदारत । दुर्भागन साँ भरी आपु ही पुनि क्यों मारत ॥ भाललिखी त्यों साहहाँ मैं सरवेध मदन के । सुकावे तुम्हें का परी। फिरैया सदन सदन के ॥ २४४ ॥ • इम कुनिया में ११ फूलों का नाम आता है । ' यह दोहा शहारसप्तशती में नहीं है ।। है: अरे : अक्षत करो ॥ * मद = अादत = वान = अभाव । ।

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