पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१४४

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- - - - - - - विहारविहार ।। गहकि गाँस औरै गहै रहै *अधकहे बैन। देखि खिसाँहँ पियनयन किये रिसॉहैं नैन । २०० ॥ किये रिसॉहैं नैन दोऊ भौहें सतराई । तिरछौंहें कै डीठ नासिका हूँ । सिकुराई । अरुनाई लहि बदन लुनाई भई जनु लहलह । सुकवि कहे किमि वैन कण्ठ ऑसुन भयो गहगह ॥ २४६ ॥ | वाही की चित चटपटी धरत अटपटे पाय ।। लपट वुझावत विरह की कपटभरे हू आय ॥ २०१ ॥ कपटभरे हु आय झपट से बात बनावत । डपट हु नहिँ सरमात निध- । रघट पुनि समुहावत । छाँडहु खटपट सुकवि करहु विनती ती ही की। जास गटपट भये आस राखो वा ही की ॥ २५० ॥

  • दच्छिन पिय व्ह बामवस विसराई तिय आन।।

एकै बासर के विरह लागे बरष बितान ।। २०२॥ लागे चरप वितान मनहु एकै दिन माहीं । ता पै दुजी रौन भये जनु कलप सिराह ॥ रहत सोई हिय सुमिरत जिय ताही क छिन छिन । स- कवि पिया घामा के बस मये हैं के दृच्छिन । २५१ . बालम वारे सौति के सुनि परनारि विहार । भौ रस अनरस रैंगरली रीझ खीझ इकवार ।। २०३ ॥ रीझ खीझ इकवार अली को अधिक सतावत । दुरजोधन ल प्रान तजत । ६ के माय भूत कामिक क्रिया में ममाम होती है ॥ यह दोहा शृङ्गारमुप्तगती में नहीं है । • माथिका भनी में है इम् िपति था मो भीर बाम के वस हुआ । अनि अर्थात् मुझमें प्रतिभा

  • थ भी भूनमया के लिये * पच वा सस्डो मुदा से नायक चतुर है तो भी अायिका के प्रेमी बम *

में हो गया है कि (पान) और सब बात भून मया ॥ शेष स्पष्ट है # पारो में ।। - - - -- - -- -- - - - - - --