पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१४५

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बिहारीविहारं, सी अति दुख पावत ॥ लहरै सी ले रही डसी सी जनु अहि कारे । दहकि रही है तिया सुकाब लाख बालम बारेछ। २५२ ॥ . . रीझ खीझ इकबार भयो तऊ सङ्कट गाढ़ो। सौत एक सौं अधिक भई

  • यह दुख हिय वाढ़ो ॥ सखियन हाहा खाइ कहत समुझावहु प्यारे । सुकवि
  • उनमनी रहत तिया लखि बालम बारे ॥ २५३ ॥

पुनः मुह सिँठास हग चीकने भैहैं सरल सुभाय । । . तऊ खरे आदर खरौ छन छन हियो सकाय ॥ २०४ ॥ छन छन हियो सकाय हाय सुनि कोमल बिनती । लखि अंग अँग अनु- कूल होत संसय अनगिनती । मीठो सबै बिलोकि सुकबि भये चकित नैन- मृग ॥ मीठी बात बनावत मीठो मुँह मिठास दृग ॥ २५४ ॥ रही पकरि पाटी सुरिस भरे भौहें चित नैन । लखि सपने पिय आनरति जगत हु लगति हिये न । २०५ ।। जगत हु गति हिये न वङ्क बातें बतरावति । छन छन लेइ उसास त्यौर तकि तकि सतरावात ॥ सौ सौ साह करी सुकाबि तउ ताप सहिरही । ससु- झाये समुझे न हठीली गाँठ गहिरही ॥ २५५ ॥ +अंगुरिनु उँचि भरु भाँत दै उलझ चितै चख लोल । । रुचि सौ दुहुँ दुहुँन के चूमे चारु कपोल । २०६ ॥ चूमे चारु कपोल दुहूँ कीनो मनभायो । दुहुँन रोमञ्चित गात सेदबिन्दुन । ॐ भोले अथवा धृष्ट । * लालचन्द्र इसी ठिकाने नायकनायिकाबर्णनरूप प्रथम प्रकरण की समाप्ति मानते हैं । और यहँा से संयोग शृङ्गार का द्वितीय प्रकरण प्रगट करते है” । ...। क साधारण में तो चुम्वन में दोनो के उचकने कौ अथवा भीत पर बोझा देने की आवश्यकता

  • नहीं। इस कारण इस आवश्यकता के दिखाने को दूसरी कुण्डलिया है ।. ., ... ।